Tuesday 12 January 2016

गत रात की बात 
सोते अपने सपनो के साथ 
आधी रात जाने क्या हुई बात 
टूटा मेरा, नींद और सपनो का साथ

कुछ देर लगी थी यकीन दिलाने मे 
नींद से खुद को बाहर लाने मे
टूटे सपनो को दिलाशा जुटाने मे
मुझे घूरते यक्ष प्रश्न का उत्तर पाने मे

उत्तर पाकर मै भी रह गया दंग
बेमतलब उभरे थे कुछ राजनैतिक प्रसंग
भयानक डर मुझ पर जमा रहे थे रंग
मेरे डर और मेरी नींद मे चली सुबह तक जंग

डाल बीज डर का मन मे अब कैसे पानी पिला रहे
भ्रष्टाचार गरीबी अल्पसंख्यक के पासे मे फंसा रहे
छोड समन्दर मे लहरो संग हमको झुला रहे
नैया पार लगाने वाले खेवक खुद को बता रहे

मेरे मिट्टी के सपनो को अपनी लहरो मे दफना देंगे
मेरे मौलिक सपनो की कल बोली वो लगवा देंगे
ये डर के सौदागर चुन चुन कर पर कतरेंगे
मेरे “डर मे ही जीत” वो अपनी, आम चुनाव मे पालेंगे
(यह रचना 17 अप्रैल 2014, दैनिक जागरण. आगरा  मे प्रकाशित हो चुकी है)

मान ना मान मै तेरा मेहमान
मुझे अपना नेता मान

मु्झे अपना सबसा बडा हमदर्द मान
विपक्षी तो सारे के सारे बेईमान
मेरे पूर्वजो ने बहुत दिए बलिदान
इसलिए मै ही हूँ सबसे महान
मान ना मान मै तेरा मेहमान
मुझे अपना नेता मान

नेताओ का मत करो अपमान
यही बचाते है देश का सम्मान
पूरा का पूरा देश कर दिया कुर्बान
तब जाके जुडा है घर मे विदेशी समान
मान ना मान मै तेरा मेहमान
मुझे अपना नेता मान

अपने डर को पहचान
हम ही बचाएंगे तेरी जान
जाँच एजेंसी जब पकडेगी कान
तब ढूंढेगा हमसे पहचान
मान ना मान मै तेरा मेहमान
मुझे अपना नेता मान

ये देश है स्वर्ग के समान
ये देश है सोने की खान
सब कुछ तू अपना ही जान
बस हमे दे दे हमारा लगान
मान ना मान मै तेरा मेहमान
मुझे अपना नेता मान

कौन कहता है सौ मे से अस्सी बेईमान
जरा बताओ कहाँ है वो बीस पहलवान
अभी चखाता हू इन्हे राजनीति का पकवान
इधर चखा पकवान उधर ये भी हम जैसे विद्वमान
मान ना मान मै तेरा मेहमान
मुझे अपना नेता मान
ये कीकर, ये बबूल मेरे लिये वादी हो चले है,
इन अंगारो भरी राहो के हम आदी हो चले है।


लम्हा-लम्हा भुलाया कभी, अभी यादो मे पहर है बाकी,
मैकदा खाली, खाली पैमाने, किसके इन्तजार मे साकी,
अंधेरी रात है यहाँ, वहाँ सितारो की महफिल सजी होगी,
पाने को मंज़िल-ए-मकसूद रात को एक पहर है बाकी।


मोदी गान
मोदी से जगा नया विश्वास है,
जी॰ डी॰ पी॰ बढने की आस है,
महंगाई ने तो मार ही डाला था,
मोदी से आयी साँस मे साँस है।
राहुल गान
राहुल देश के युवाओ की आन-बान है,
दस सालो मे देश को बनाया महान है,
मैट्रो स्कूल एयरपोर्ट सब कुछ है दिया,
राहुल के विकास के सपने मे जान है।
केजरीगान
सबको मिला मौका अब केजरीवाल की बारी है,
भ्रष्टाचार महंगाई की देश से मिटानी बिमारी है,
उन्नचस दिन, उनके पूरे साठ साल पे भारी है,
आप बहुत क्रान्तिकारी बहुत ही क्रान्तिकारी है।


हैप्पी होली, हमजोली संग ठिठोली, मजा ही कुछ और है,
पानी मे डले रंग, रंग पर चढे भंग, मजा ही कुछ और है,
जमकर रंगलो प्यार,गुंजिया रही पुकार, हुडदंगी त्यौहार,
पिचकारी की धार, फुआर पलटवार,मजा ही कुछ और है।
 


होली आई होली आई, आई होली खोली मे,
टोली लेके आये नेता वोट मांगने खोली मे,
नीले पीले हरे गुलाबी, बोलो कैसा लोगे रंग,
रंग बिरंगे सपने लेकर आये नेता झोली मे।
 
 
 

अंधकार है अंधे नही है


आंखे बन्द करना ही काफी नही है, छोटी-बडी सभी बत्ती बुझा दो, जर्रा जर्रा अंधेरे के आगोश मे होना चाहिए, अच्छी नींद के लिए ये सब करना जरूरी है। ऐसी रात का अंधियारा क्या बुरा है जिसमे कुछ खुशनुमा सपने हो, कुछ रहनुमा से अपने हो, ऐसे अपने सपने जपने मे अपना या किसी का क्या जाता है, आता जरुर है, आता है “एक अहसास”  रहनुमा की शक्ल लिए महानुभावो को नुमाइश से रिहाइश मे देखने का,  अहसास है तो क्या ? ये तो मेरे अपने अंधियारे के परोसे अहसास है, उजाले तो आते ही ये भी छीन लेंगे । 
रात काली है तो क्या हुआ ये तो देखने वाले की दूषित मनोवस्था का दोष है जो काले को बुरा मानता है, ये काली रात ही तो है जो दिन महीने साल बीत जा्ने पर भी नही बदलती है। अच्छे बुरे दिन सभी के आते है, लेकिन क्या कभी किसी को कहते सुना है कि जीवन मे अच्छी बुरी राते आती रहती है। इस रात की सुबह नही, हो भी क्यो? ना मुझे ना अंधेरे को शिकायत फिर क्या करेगी रात?
पाँच साल बाद आती है ये रात, जो ऐसे ऐसे सपने दिखाती है कि हकीकत भी झेपने लगती है। सांछ ढले जैसे जैसे उजाला अपनी लालिमा की तरफ बढता है, चर्चाए जोर पकडने लगती है, “अबकी बार दुल्हा असरदार”, “दुल्हा असरदार नही दुल्हा समझदार हो” आदि आदि, फिर सेहरा बाँध कर अपनी बडी-बडी कसमो वादो की बारात लेकर दुल्हा आ ही जाता है। फिर क्या घराती, क्या बाराती सब लग जाते है नाचने और बाचने “छटने ना पाए अंधकार, अबके दुल्हेराजा की सरकार"। कुछ आतिशबाजियाँ भी इस बारात का अभिन्न अंग होता है, भले ही इन आतिशबाजियो के धुए से घराती बाराती खासते खासते परेशान हो जाय और कभी कभी कुछ अनहोनी का शिकार भी भी क्यो ना हो जाय, लेकिन सभी अपनी अपनी पसंद के अनुसार इस आतिशबाजी से अपना मनोरंजन करने से नही चूकते। 
ऐसे ही रात मे दुल्हे राजा सपने मे रूप रखकर आते है और सारी की सारी दहिया पीकर चले जाते है। कसमो वादो की बारात मे झूमते घराती ये अपनी छाछ संग रुखी सूखी रोटी भी गंवा बैठते है। तारो की छाव मे बाबुल की  लाडली जैसे हाथ से रपटती हुई, उंगली पर अपना निशान बनाती, दुल्हेराजा के घर को स्वर्ग बनाने निकल जाती है। बाबुल दुल्हेराजा की तरफ होठ हिलाते बिना स्वर के अपने अन्तर्मन का अहसास करता है और अपनी लाडली को बाबुल के आंगन मे पाये संस्कारो पर चलने का रास्ता बताते हुए, मुँह फेर लेता है। 
स्वर्णीम युग की तलाश मे चंदा की चांदनी मे बटोरी चांदी भी काली रात सी काली पड जाती है और रह जाती है तो एक तलाश, एक और अंधेरी रात की, सपनो की सैगात की, एक नये दुल्हे के साथ की, फिर कुछ कसमो वादो की बारात की। अंधेरो मे आये सपने बन्द दरवाजो से आते है, ये चोर सपने होते है, दिन के सपनो को स्वीकार करना होगा, यही सच्चे सपने है। सपनो को सच्चा करना है तो इन्हे अंधकार से निकालना होगा, अपने सपनो को उजाला दिखाना होगा। कसमो वादो की बारात नही, आतिशबाजियो की सौगात नही, विचार मंथन और मुद्दो पर बात कर, अंधकार के अंधेपन से पार पाकर उजालो की हकीकत को स्वीकार कर  अपने सपनो को सीचना होगा।
गधे नही चूहे बनिये

गधे ने तो फालतु मे ही नाम कमा लिया वरना वजन सहने मे चूहे का कोई सानी नही। चूहे को ऐसे ही गणेश जी का वाहन थोडे ना माना गया है, गणेश जी लड़ुओ के शौकीन तो थे ही,  इसके अलावा भी खाने-पीने के बडे शौकीन थेरही सही कमी सर्जरी ने पूरी कर दी और भारी भरकम गणेश जी बन गये वक्रतुण्ड। अब यह बताने की जरुरत तो है नही की शास्त्रो के अनुसार वक्रतुण्ड महाकाय का वाहन कौन था, चुहा।

जीवन को यूँ तो बोझ नही समझना चाहिए लेकिन दिन प्रतिदिन की नयी-नयी समस्याओ का बोझ मजबूत कन्धो को झुकाने पर तुला रहता है, जैसे जैसे कन्धे मजबूत होते चले जाते है समस्याओ का बोझ भी बधता चला जाता है। जो भी इस वजन को गधा बन कर उठायेगा उसके कन्धे टूटने ही टूटने है, जो चूहा बन कर वजन उठायेगा वही सफल होगा और गणपति का आशीर्वाद प्राप्त कर हर प्रतियोगिता मे प्रथम स्थान पा जायेगा

चूहा कभी अपना शरीर भारीभरकम नही होने देता और जब जंगल मे आग लग जाती है तो अपने बिल मे चूहा ही सुरक्षित रहता है। यदि विपत्ति का बोझ इतना बढ जाये कि दब कर मरने की स्तिथि हो जाय तो बिल मे घुसने की कला चूहे से सीखना जरुरी है। पांडवो ने भी अपनी जान लाक्षागृह मे बिल मे घुसकर ही बचायी थी, पांडवो को ये चुहा ज्ञान प्राप्त था। यूँ तो चुहा किसी को नुकसान नही पहुँचाता लेकिन यदि उसे किसी जाल मे कोई फसाने की चेष्ठा करता है तो उसके पैने दाँत उस समय अपना काम बखूबी करते है। अपने दाँत इतने मजबूत होने चाहिए कि कभी शत्रु की चाल मे फँस भी जाय तो कितना भी मजबूत बन्धन क्यो ना हो निकलने की क्षमता हो।

कोई कितना भी चुहा कहकर चिडाये घबराइये नही, जो भी आपको चिडाता है वह आपका हितैशी नही है, वह आपको गधा बनाना चाहता है। यदि आपको जीवन की हर प्रतियोगिता मे प्रथम स्थान प्राप्त करना है तो आपको चूहा बनना है फिर देखिए आपको कोई नही रोक पायेगा।
बेरोजगारी एक राष्ट्रीय धरोहर

बेरोजगारी का सामाजिक और राष्ट्रीय योगदान अतुलनीय, सराहनीय और सम्माननीय है।बेरोजगारीजनित, कडकी समपन्न, भत्ता सुसज्जित बेरोजगार प्राणियो को हमारे समाज मे जो स्थान प्राप्त है, वह संतोषजनक नही है। राष्ट्रहित मे बेरोजगारी के लिए अतुलनीय योगदान देने वालो का सम्मान होना चाहिए, ना केवल सम्मान बल्कि इसमे विशिष्ठ योगदान के लिए एक राष्ट्रीय पुरुस्कार की घोषणा होनी चाहिए। बेरोजगारी एक राष्ट्रीय धरोहर है, राष्ट्रहित मे सभी राष्ट्रवादी ताकतो को इस धरोहर को सम्भालने के लिए बढ-चढ कर आगे आना चाहिए

राष्ट्रीय समस्या बन चुका मेल-फीमेल अनुपात सही बनाये रखने मे बेरोजगारीजनित इन बेरोजगार युवको का बडा योगदान है। काफी बडी संख्या मे बेरोजगार युवा बिनब्याहे ही रह जाते है और ब्याह के लिए एक युवक एक युवती का अनुपात सही बना रहता है। जब जहाँ जिसका ब्याह हो ऐसे बेरोजगार युवको का बलिदान ब्याहताओ को जरुर याद करना चाहिए और उनका धन्यावाद अदा करना चाहिए। ऐसे बेरोजगार युवको का जब ब्याह नही होगा तो बच्चे भी नही होते और इससे जनसंख्या वृद्धि की राष्ट्रीय समस्या का भी हाथो-हाथ निदान हो जाता है। वही येनप्रकारेण रोजगार प्राप्त प्राणी जनसंख्या वृद्धि और मेल-फीमेल के बिगडे अनुपात की समस्या को पुनः ज्यादा व्यापक बना देते है

यहाँ यह जाननीय है कि हमारे माननीय बेरोजगारी को पहले से ही राष्ट्रीय धरोहर मान चुके है तभी तो वे चुनाव मे इसका धडल्ले से प्रयोग करते है और इसका ब्योरा चुनावी खर्चे मे भी नही देते। यह किसी पार्टी विशेष का मुद्दा भी नही है, इस मुद्दे पर सभीमाननीय एकमत है बेरोजगारी से सुसज्जित बहुत से युवा, नेताजी के चुनाव मे इसी आस से निस्वार्थ सेवा देते है कि बाद मे कही जुगाड लगाने मे मदद मिल जायेगी या कही कोई ठेका बगरह, कुछ नही तो नेता जी के इतने सम्बन्ध तो है ही कि कही प्राइवेट जुगाड तो बना ही देंगे इस तरह बेरोजगारी चुनावी खर्चे को कम करने मे भी अपना योगदान देती है, इस योगदान को अमुल्य कहे या फ्री का ये अलग बात है
बेरोजगारी बुढापे की लाठी की तरह होती है, वरना रोजगार तो बेटो को छीन लेता है। जिसने अपने कम से कम एक बेटे का योगदान राष्ट्रीय बेरोजगारी मिशन मे नही दिया, अपनी युवा अवस्था मे ही वृद्धाआश्रम मे अपनी जगह सुरक्षित करा लेना बेहतर रहेगा। बेरोजगारी के उच्च-संस्कार प्राप्त बेरोजगार ही अपने बूढे माता-पिता का श्रवण कुमार होता है। इस बिगडे सामाजिक ढाचे के सुधार मे बेरोजगारी एक उम्मीद की किरण है। बेरोजगारी का ये सामाजिक सुदृढीकरण का योगदान निश्चित रुप से सराहनीय है। 

महंगाई, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, नारी उत्पीडन, विकास आदि सब छोटे मुद्दे है, चुनाव के समय अखबार के मुख्य पृष्ठ पर कब्जा कर लेते है, आते तो ऐसे धूमधडाके के साथ है जैसे कोई जनआन्दोलन, जाने कितना बडा परिवर्तन होने वाला है और नतीजे फुस्स। बेरोजगारी इन सबसे ऊपर है, उसको किसी अखबार या हैडलाइन की जरुरत नही हैउसका अपना अलग ही अखबार चलता है और अपना अलग ही कार्यालय। बेरोजगारी किसी पर निर्भर नही है, हाँ बहुतो का बहुत कुछ बेरोजगारी पर निर्भर है।
दूध तेरे कितने रंग

चाय पियो मस्त जियोदूध का तो नाम भी मत लो और नाम लेना भी है तो पालीपैक दूध कहो,लोहे की भैस वाला दूध कहो। आसपास रोब जमाने के लिए थोडी बहुत रहीसी झाड लो ठीक हैलेकिन इससे कोई दूध वाला थोडे ना हो जाता है। नींद खुलती है चाय पी कर और शौक दूधवालेटैक्सवसूली वाले कल ही खबर लेने  जायेंगे। वो तो सतयुग था जो जो माखन चोरी होजाता थाये कलयुग है अब तो पूरी की पूरी भैस ही चोरी हो जाती है। जिसका हिसाब किताबइतना हो कि भैस गुम हो जाय तो ढुंढवा सकेवही पाल सकता है दूध का शोकना तो गलती सेभी दूध के नाम की शेखियाँ मारना खतरे से खाली नही है।
पालीपैक या लोहे की भैस के दूध की बात ही अलग हैहाई टैक्नोलाजी से गवर्न होता हैपालीपैक या लोहे की भैस का दध सब गवर्नैन्स का कमाल है। पालीपैक या लोहे की भैस के दूधसे बनी चाय पियो और हाईटैक हो जाओ। वहाँ पर हाई टैक्नोलाजी से चारा उगाया और उगानेके बाद खुद नही खाया जाताकेवल दूध वाली भैसो को खिलाया जाता हैहाई टैक्नालाजी सेउन भैसो को नहलाया जाता हैउसका नतीजा ये निकलता है कि एक-एक भैस ने दिन मे चार-चार बार बीस-बीस किलो दूध देती हैज्यादा हो गया क्याबीस लीटर दूध ज्यादा लग रहा है ?बस यही माडर्न मार्किटिंग टैक्नोलाजी को लाना हैगवर्नैन्स के साथफिर देखो कैसे दूधोनहाया जाता है। भैस और पालीपैक या लोहे की भैस के दूध की जाँच का जिम्मा शिवनगरी केपास है कि किसमे कितना है दम। जाँचमैन भी जमे है कि दूध की क्रीम जाँचनेजाँचा जायेगाकि इस दूध से किसकी कितनी भैसो का दूध है और इन भैस के गोबर से कौन गैस बना रहा है।जाँच की जायेगी कि यदि पालीपैक या लोहे की भैस का दूध से चाय बन सकती है तो मैंगो शेकक्यो नही बन सकताजनता से राय ली जायेगी कि वह इस दूध की वो चाय पीना चाहते है किमैंगो शेकतभी होगा दूध का दूध और पानी का पानी। चाय या मैंगो शेक बाद की बात है हर माँचाहती है कि पहले उसके बच्चे के दूध की पूर्ति होहोनी भी चाहिए, बेहतर भविष्य कि चिन्ताबच्चो की माँ को ही सबसे ज्यादा होती है।
चाय दूध बस चर्चा चिंतनमंथन चलता रहेगानिर्णय लेने का काम ठंडे दिमाग से ही होनाचाहिए, इसलिए ठंडा पानी पीना बनता है और कभी-कभी जिसका जैसा स्वाद चाय, मैंगो शेकका स्वाद भी बनता है 
आम से अमिया हुई क्रिकेट किसके लिए 

बालीवुड 
मे भले ही मुन्नी अमिया से आम होकर बदनाम हो गयी हो लेकिन मुन्नी बच्चे की जुबा पर राज कर गयी। क्रिकेट मे ये फार्मुला बिल्कुल उलट कर प्रयोग हुआ है, क्रिकेट पचास के आम से बीस की अमिया हो गया है और हर किसी के दिमाग पर छा गया है। दिन के उजाले वाला सभ्यता का खेल क्रिकेट, आज दूधिया रोशनी मे भव्यता का क्रिकेट हो गया है। अमिया क्रिकेट मैदान पर लाखो की भीड जमा करने मे सक्षम हैजब बात लाख की हो तो शाख का क्या अचार डालना है? आमक्रिकेट आज सभ्यता के मैडल सा खुंटी पर लटका दिखायी देता है।

आम क्रिकेट  उस उन्नीसवी शताब्दी के ब्लैक एण्ड व्हाइट टीवी जैसा हो गया है, जिसका स्विच आन करने के बाद जब तक टीवी गरम हो तब तक तो चित्रहार का एक गाना भी निकल जाय। आमक्रिकेट मे पहले पाच ओवर बल्लेबाज को गरम होने मे लगते थे, उसके बाद स्लिप से फिसलते-फिसलते चुपचाप सभ्यता का परिचय देते हुए गली से अपने गतव्य पर अग्रसर हो जाते थे। स्क्रीन दाये बाये का झमेला, पिच ठोक-ठोक के पिलपिला कर देना, पहली गेंद को शिष्टाचार के नाते रोकनासाथी खिलाडी से चार बात छोकना, ऐसे सभी अनैच्छित चौचले आज के अमिया क्रिकेट मे वर्जित है। अमिया क्रिकेट मे इधर बल्लेबाज आते ही बालर को ठोकता है, उधर सिद्धु जी को अपना चुटकला ठोकते हैऔर लाखो दर्शक ताली ठोकते हैसीधे ठा ठा।
इस अमिया क्रिकेट मे बालर की हालत एक वोटर जैसी हो गयी है, बालर जमे हुए बल्लेबाज को बोल्ड करने के बाद पल भर की खुशियाँ भले मना ले लेकिन आने वाला बल्लेबाज मैदान मे आते ही महीनो से पिंजरे मे बन्द भूखे शेर सा झपट पडता है और बालर की हालत ऐसी हो जाती है जैसे शोले का हस्तविहीन मजबूर ठाकुर। बालर छक्के पर छक्के खाकर पहले ही झुंझलाया हुआ होता है और अल्पचीर सुसज्जित चीयर बालाए जोरदार चीयर करके नाजुक दौर से गुजर रहे बालर के जले पर नमक छिडकने का काम करती है। बल्लेबाज को बोल्ड करने के बाद बालर चीयर बालाओ की तरफ अपना विशेष नृत्य करके अपनी खीज उतारता है। हर छक्के के बाद बल्लेबाज मस्त और बालर पस्त हो जाता है, इस बीच चीयर बालाए इतना पसीना बहा देती है जैसे बल्लेबाज ने बस बल्ला घुमाया हो और इन्होने ही भाग-भाग कर छ रन पूरे किये हो।
अल्पचीर सुसज्जित चीयर बालाये, सिद्धु जी और बल्लेबाज तीनो अन्दर ही अन्दर ऐसे तरबूज से लाल हुए जाते है, जैसे भीड उन्हे ही सबसे ज्यादा चीयर कर रही है। रैड कारपेट की चाह वाले आज कारपेटछोड कारपोरेट की वाह वाह पा रहे है। खिलाडी, बालीवुड और कारपोरेट तीनो के अदभुत संगम मे डुबकी लगाकर, जिसका मौका लग रहा है, वह पुण्य प्राप्त करने से नही चूक रहा है, ये मेला कोई सोलह साल मे थोडे ना लगता है, ये तो हर बरस का मेला है। ये खेल है, खेला है या झमेला है, जो भी है, आज प्रशंसको का बडा मेला है।
नालायक नही छलनायक हूँ मै

कोई बस इस बात पर यकीन कर ले कि वह नालायक है फिर उसके जीवन मे अपार सम्भावनाए है। लायक की  स्तिथि इस मामले मे बहुत दयनीय है, यदि कोई पढने मे अच्छा है तो उसकी गायक या खिलाडी बनने की सम्भावनाए बहुत कम रह जाती है, यदि कोई गाने लायक है तो उसकी पढने या डाक्टर बनने की सम्भावनाए बहुत कम रह जाती हैयदि कोई डाक्टर बनने लायक है तो उसकी खिलाडी या इंजीनियर बनने की उम्मीद कम रह जाती हैलायक के साथ समस्या ये है कि वह वही बन सकता है जिसके लायक वह है, इसके अलावा दूसरे क्षेत्रो मे कुछ करने की उम्मीद उसके लिए न्यूनतम रह जाती है। इसके उलट नालायक के जीवन मे सारे क्षेत्रो मे सफलता पाने के द्वार खुले रहते हैयदि सही गुरु मिल जाये तो वह जो चाहे बन सकता है, आओ जाने कैसे?
जो डाक्टर बनने लायक नही है, उसके लिए डाक्टर बनना लायक से कही आसान है। करना बस इतना है कि एक जूट का झोला खरीदना है, उसमे कुछ बुखार, खाँसी, दस्त, उल्टी आदि की दवाईयाँ रखनी है, इसके लिए भी दवाईयो की जानकारी जरूरी नही है बस बिमारियो की जानकारी होना जरुरी है, दवाईयो की जानकारी तो मैडिकल स्टोर वाला से मिल जायेगी। इसके बाद सीधे गाँव का रुख करना है और ताऊ को राम राम कर वही जम जाना है, पडोस के गाँव के मरीजो की चार बात करनी है और ताऊ को खाँसी की दवाई थमा कर, अपना व्यस्तता समझाते हुए वहाँ से निकल लेना है। बस अगली बार गाँव मे आकर ताऊ को राम-राम करनी है, मरीज तैयार रखना ताऊ का काम है। ये पढाई किसी मैडिकल कालेज मे नही पढाई जाती, इसलिए वहाँ जाने की जरुरत भी नही है। जितने दिन मे मैडिकल कालेज मे डाक्टर  पढाई करके तैयार होते है, उतने दिन मे तो डाक्टर बनकर बच्चो को अंग्रेजी स्कूल मे पढाई लायक डाक्टरी चल निकलती है। बस इसमे इतना ध्यान रखना है कि मैडिकल कालेज वाले डाक्टर गाँव मे आते नही है और झोले वाले डाक्टर को शहर मे जाना नही है।
मान लिया डाक्टर बनने की इच्छा नही है और गाना लिखने या गाने की इच्छा है तो वह भी बहुत आसान है। गाना लिखने के लिए बस करना इतना है कि शब्दो को जोडतोड कर अन्तशब्द का मिलान करना है, जैसे मेरा ऊँचा मकान/ सामने हलवाई की दुकान/ हलवाई बेईमान, उसका फीका पकवान/ओए मैन्नी खानाजी नीखानाओए मैन्नी खाना॥ आजकल गाना लिखने के लिए महबूबा, सूरज, चाँद,तारो को परेशानी मे डालने की बिल्कुल जरुरत नही है, थोडी तुकबन्दी हो तो बस बचाकुचा काम ढोल नगाडे पूरा कर देते है। गाने का काम उससे भी आसान है,  आवाज फटा बास भी हो कोई बात नही, उसके लिए आजकल कम्पयूटर है ना। वैसे भी जब अच्छा कम्पयूटराइजड डिजिटल म्युजिक हो तो फिर आवाज सुनता भी कौन है? बस अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए गाने बजाने का काम बिल्कुल आसान है।
मान लिया नालायक होने की गुणवत्ता पर पक्का यकीन है और इंजीनियर बनना है तो उसके लिए इंटर पास करने के बाद बस इतना काम करना है कि इंजीनियरिंग परीक्षा का प्रवेश पत्र मिल जाय, तो समझो इंजीनियर बन गये। केवल परीक्षा प्रवेश पत्र पर ही उपहार स्वरुप लैपटाप लेकर इतने चहेते आ जायेंगे कि अज्ञातवास ही एक मात्र बचने का तरीका है, नही तो मानो कि इंजीनियर बन गये। वैसे इसका शार्टकट भी है किसी अनजान शहर मे किसी नुक्कड वाली स्कूटर वर्कशाप पर एक साल मे ही आटोमोबाइल इंजीनियर तैयार कर दिये जाते है और विदेश मे अच्छी नौकरी भी तुरन्त मिल जाती है। यदि इन सबसे भी काम ना चले तो दिन भर पान के खोखे, नुक्कड की दुकान, असामाजिक काम मे जहाँ मौका लगे, अपनी चोंच लडाईये और सामाजिक छल विज्ञान के विद्वान बन जाइये, इसके बाद ना केवल खुद का उत्थान करने मे सक्षम होंगे बल्कि बहुतो के प्रनेता भी बना जा सकता है। लायक की लायकी की मजबूरी, नालायक की नालायकी की मशहूरी, हे ऊपर वाले ये तेरी कैसी मंजूरी ?