Tuesday 12 January 2016

विजयी सत्य है

ये सत्य भी ना बस, कोने में कहीं छुपा, सुकडा सा बैठा मिलता हैकोई अपने पास पलभर बैठाने के लिए तैयार नहीं है। इसके बावजुद सत्य ये दावा ठोकने से नहीं चूकता कि साँच को आँच नहीं। सत्य के लिए ऐसी आँच कहाँ से लाऊ जो उसकी सिकुड़न दूर कर दे, ये कोई सर्दी की सिकुड़न तो है नहीं कि आंच से दूर हो जायेगी। सत्य और झूठ मे कबड्डी के खिलाडियों की तरह का खेल चलता रहता है, बस डैन झूठ को ही देनी होती है। जो है वो तो है हीउसकी सत्यता से कौन इन्कार कर सकता है, लेकिन बडी बात तो तब है जो नहीं है फिर भी है, भले ही आज वह एक जुझारु संघर्षशील झूठ हैजो एक स्थापित सत्य को चुनौती दे रहा है। जिसने कुछ ऐसा सोचा जो अभी तक स्थापित सत्य नहीं है अर्थात अभी तक झूठ है, उसी ने दुनिया में नई खोज की है और दुनिया को नयी दिशा दी है। जब-जब कोई झूठ जीतता हैजीतते ही सत्य उसे अपने पाले में खींच लेता है। झूठ तब तक झूठ है जब तक वह जीत नहीं जाता। विजयी सत्य है। आज यहाँ तो कल वहाँ, जहाँ विजय वहाँ उत्सव, यही रीत है। क्या ये विजय उत्सव वर्तमान सत्य की भूतपूर्व सत्य पर विजय का उत्सव है, क्योंकि सत्य तो पहले से ही विजयी है तो फिर उत्सव क्यो?  
बच्चो को भी अपनी परीक्षा में ट्रयु फाल्स के प्रश्नो से रूबरू होना पडता है। प्रथम सत्र में तो यही ट्रयु था कि डा॰ श्री मनमोहन सिंह हमारे देश के प्रधानमंत्री हैं”, फाइनल परीक्षा आते-आते फाल्स हो गया। आज "श्री नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं“, यही ट्रयु है। कोई विद्धार्थी यदि इसे ऐसे समझे कि कोई सत्य अन्तिम सत्य नहीं होता। आज जो फाल्स है, वही आने वाले समय का सत्य हो सकता है इसलिए फाल्स को एक सिरे से नकारा नहीं जा सकता। वही आज जो सत्य है, वह कल फाल्स हो सकता है, इसलिए तत्कालिक सत्य को अन्तिम सत्य मानना भी सही नहीं है। क्या पुरातन सत्य को सिहांसन से हटाकर नूतन सत्य खुद के लिए जगह बनाता है? नूतन सत्य स्थापना के बाद पुरातन सत्य क्या सत्य नहीं रह जाता? क्या हर सत्य का भूत झूठ हैझूठ और सत्य का क्या पता, जब तक परखा ना जाय। विभीषण ने तत्कालिक सत्यता अर्थात रावण को परखा और अपनी जीवन्तता साबित की। सत्यता की निरन्तर खोज ही जीवन्तता का प्रमाण है। सत्य का रास्ता दुनिया नहीं सह सकती। बापू जी का जीवन देखिये,उन्हे जब कोई दूसरा मारने के लिए तैयार नहीं होता था तो वे अपनी आत्महुति देने पर तुल जाते थे। सत्यता को भी बारम्बार परीक्षा से गुजरना पड़ता है, खुद को सिद्ध करना पड़ता है।
ऐसा कहा जाता है कि सच्चाई कड़वी होती है इसलिए थूक दी जाती है। किसी से सुना था कि हनुमान जी ने एक भक्त से प्रसन्न होकर वर मांगने के लिए कहा। भक्त ने हनुमान जी से हनुमान जी जैसी शक्ति मांगी। हनुमान जी के समझाने के बावजूद हनुमान जी को भक्त की जिद के सामने विवश होकर शक्ति देनी पडी और परिणामस्वरूप भक्त का शरीर फट गया क्योंकि भक्त का शरीर उस शक्ति को समायोजित नहीं कर पाया। शायद सत्य की शक्ति भी ऐसी ही होती है जिसे समायोजित करने के लिए पहले खुद को तैयार कर लेना जरूरी है। तब तक यही सही माना जा सकता है कि सच्चाई कडवी होती है इसलिए इसे थूक दिया जाता है।

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