Tuesday 12 January 2016

श्रोता है ये, सब जानता है

निंदा एक ऐसा मंत्र है, जिसके आगे सब प्रतंत्र है। प्रशंसक बनोगे तो शक होगा कि कुछ फायदा उठाना की तैयारी है। निंदक बनो, ऐसा करने से आप सच्चे, निडर और उत्तम किस्म के चिंतक माने जाएंगे। जो कर सके निंदा, बस वही है जिंदा। देश स्वतंत्र हो गया और आज मंगल पर पहुँच गया, ऐसी प्रशंसात्मक चक-चक आज कोई नहीं सुनना चाहता। खास मौको पर मंथन इस बात पर होना चाहिए कि देश में गरीबी कितनी है, देश में साम्प्रदायिकता कितनी है, देश की हवा में कितनी धूल है, यही असली भारत की तस्वीर है, बाकी सब ऊल-जलूल है। वक्ता ने खास मौकों पर किसी का महिमा मंडन कर दिया तो  श्रोता के  कान अगले ही पल  सुप्तावस्था में चले जाएंगे। वक्ता विषय के पीछे का दर्द कितना समझता है, उसी से पता लगेगा कि वक्ता के पावन विचारों में कितनी गहराई है।
राष्ट्रीय चिंतन की गोष्ठियों में बलिदानों, देशप्रेम की बातों, देशभक्ति के गीतों आदि सुनते-सुनते अब श्रोता पक गए है। राष्ट्रभक्ति और बलिदानियों की सभी बातें, इतिहास में दर्ज है, उनको कहने के तमाम नए तरीकों का जो भी शोध हो सकता था, शोधियों ने पहले ही कर लिया। अब उसमें ज्यादा नए शोध की गुंजाइश नहीं है। विषय के परमज्ञानी वक्ता को अपनी बुद्धिमत्ता सिद्ध करने के लिए कुछ नई-सी बात कुछ नए-से तरीके से रखनी पड़ती हैं। राष्ट्रीय मुद्दों को बस वही ठीक ढंग से समझ पाया है जो देश की कमियां और दर्द को दिल की गहराईयों से महसूस कर सकता है। ना केवल महसूस करे बल्कि कुछ इस तरह समझा भी सके कि सुनने वाला, किसी भी राष्ट्रीय चिंतन की गोष्ठी में किसी भी राष्ट्रीय गर्व को पूर्व की एक घटना और दर्द को वर्तमान मानने के लिए मजबूर हो जाए। लेकिन इसके लिए सामाजिक समस्याओ के गहनतम अध्य्यन की जरुरत होती है। वैश्वीकरण के इस दौर मे, ऐसे गहन अधय्यन के लिए टैक्नालाजी, संवेदक संगठनों आदि की मदद से वक्ता अपनी संवेदना के समन्दर को असीमित गहराई तक ले जा सकता है।
ऐसे वक्ताओं को नकारात्मकता, निंदा और अराजक जैसे अमानवीय शब्दो झेलना पड़ सकता है, लेकिन वक्ता को खुद को आलोचक की भुमिका में अपने देशप्रेम को पुनर्स्थापित करने में नहीं चूकना चाहिए। वक्ता को ये जरूर बताना चाहिए कि देश की नीतियों को सही दिशा आलोचना के बिना देना असम्भव है। किसी पूर्व वक्ता ने यदि विषय की सकारात्मकता पर बोल कर ताली बटोर भी ली तो घबराने की जरुरत नहीं है। नकारात्मकता के लिए फिर भी काफी जगह बचती है। बात शुरु ही कुछ इस प्रकार की जा सकती है कि मेरे पूर्व वक्ता ने बहुत ही ओजस्वी भाषण दिया लेकिन वे शायद विषय के फलाना दृष्टिकोण से वाकिफ नहीं है, वरना वो ऐसा ना कहते। वक्ता जानता है कि जो उल्टा चलता है वही चल रहा है बाकी सब तो हवा में कटी पतंग हैं। श्रोता है ये, सब जानता है, कौन चल रहा है और कौन चला रहा है।

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