Tuesday 12 January 2016

बेरोजगारी एक राष्ट्रीय धरोहर

बेरोजगारी का सामाजिक और राष्ट्रीय योगदान अतुलनीय, सराहनीय और सम्माननीय है।बेरोजगारीजनित, कडकी समपन्न, भत्ता सुसज्जित बेरोजगार प्राणियो को हमारे समाज मे जो स्थान प्राप्त है, वह संतोषजनक नही है। राष्ट्रहित मे बेरोजगारी के लिए अतुलनीय योगदान देने वालो का सम्मान होना चाहिए, ना केवल सम्मान बल्कि इसमे विशिष्ठ योगदान के लिए एक राष्ट्रीय पुरुस्कार की घोषणा होनी चाहिए। बेरोजगारी एक राष्ट्रीय धरोहर है, राष्ट्रहित मे सभी राष्ट्रवादी ताकतो को इस धरोहर को सम्भालने के लिए बढ-चढ कर आगे आना चाहिए

राष्ट्रीय समस्या बन चुका मेल-फीमेल अनुपात सही बनाये रखने मे बेरोजगारीजनित इन बेरोजगार युवको का बडा योगदान है। काफी बडी संख्या मे बेरोजगार युवा बिनब्याहे ही रह जाते है और ब्याह के लिए एक युवक एक युवती का अनुपात सही बना रहता है। जब जहाँ जिसका ब्याह हो ऐसे बेरोजगार युवको का बलिदान ब्याहताओ को जरुर याद करना चाहिए और उनका धन्यावाद अदा करना चाहिए। ऐसे बेरोजगार युवको का जब ब्याह नही होगा तो बच्चे भी नही होते और इससे जनसंख्या वृद्धि की राष्ट्रीय समस्या का भी हाथो-हाथ निदान हो जाता है। वही येनप्रकारेण रोजगार प्राप्त प्राणी जनसंख्या वृद्धि और मेल-फीमेल के बिगडे अनुपात की समस्या को पुनः ज्यादा व्यापक बना देते है

यहाँ यह जाननीय है कि हमारे माननीय बेरोजगारी को पहले से ही राष्ट्रीय धरोहर मान चुके है तभी तो वे चुनाव मे इसका धडल्ले से प्रयोग करते है और इसका ब्योरा चुनावी खर्चे मे भी नही देते। यह किसी पार्टी विशेष का मुद्दा भी नही है, इस मुद्दे पर सभीमाननीय एकमत है बेरोजगारी से सुसज्जित बहुत से युवा, नेताजी के चुनाव मे इसी आस से निस्वार्थ सेवा देते है कि बाद मे कही जुगाड लगाने मे मदद मिल जायेगी या कही कोई ठेका बगरह, कुछ नही तो नेता जी के इतने सम्बन्ध तो है ही कि कही प्राइवेट जुगाड तो बना ही देंगे इस तरह बेरोजगारी चुनावी खर्चे को कम करने मे भी अपना योगदान देती है, इस योगदान को अमुल्य कहे या फ्री का ये अलग बात है
बेरोजगारी बुढापे की लाठी की तरह होती है, वरना रोजगार तो बेटो को छीन लेता है। जिसने अपने कम से कम एक बेटे का योगदान राष्ट्रीय बेरोजगारी मिशन मे नही दिया, अपनी युवा अवस्था मे ही वृद्धाआश्रम मे अपनी जगह सुरक्षित करा लेना बेहतर रहेगा। बेरोजगारी के उच्च-संस्कार प्राप्त बेरोजगार ही अपने बूढे माता-पिता का श्रवण कुमार होता है। इस बिगडे सामाजिक ढाचे के सुधार मे बेरोजगारी एक उम्मीद की किरण है। बेरोजगारी का ये सामाजिक सुदृढीकरण का योगदान निश्चित रुप से सराहनीय है। 

महंगाई, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता, नारी उत्पीडन, विकास आदि सब छोटे मुद्दे है, चुनाव के समय अखबार के मुख्य पृष्ठ पर कब्जा कर लेते है, आते तो ऐसे धूमधडाके के साथ है जैसे कोई जनआन्दोलन, जाने कितना बडा परिवर्तन होने वाला है और नतीजे फुस्स। बेरोजगारी इन सबसे ऊपर है, उसको किसी अखबार या हैडलाइन की जरुरत नही हैउसका अपना अलग ही अखबार चलता है और अपना अलग ही कार्यालय। बेरोजगारी किसी पर निर्भर नही है, हाँ बहुतो का बहुत कुछ बेरोजगारी पर निर्भर है।

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