रामलीला मैदान की मिट्टी
राम का नाम लेकर पत्थर भी तैरने लगे थे। राम के चरण स्पर्श से अहिल्या को मुक्ति मिली थी। ये पुरातन कथाए भी मान ली जाए तो आज टच स्क्रीन फोन के टच से कोई अछूता नहीं है। शायद राम के नाम का ही असर होगा कि रामलीला मैदान में आज भी टच द्वारा कायाकल्प की आलौकिक शक्ति मोजूद है। रामलीला मैदान से ही उन्हे उस सुपर टच स्क्रीन यंत्र की प्राप्ति हुई। जो भी उस यंत्र को स्पर्श करता है, उसका रोम-रोम ईमानदारी से भर जाता है। स्पर्शमात्र से वो उन्ही की भांति ईमानदारी की प्रतिमूर्ति बन जाता है। भ्रष्टाचार, अहंकार, बदले की भावना जैसे दुर्गुण स्वतः ही उससे दूर भागने लगते है। ना केवल दूर भागने लगते हैं बल्कि विपक्षी की नसों में काला खून बनकर दौड़ने लगते हैं।
अपार कठिनाइयों से गुजरकर स्पर्श पद्धति द्वारा उनका शुद्धिकरण किया गया था। स्पर्श शुद्धिकरणोप्रान्त वो गंगा सरीखे पवित्र हो गए थे। इसके बावजूद भी कोई उन्हे संदेह के घेरे में लाने की कोशिश करे तो गुस्सा आना लाजमी है। इसे तो रामलीला मैदान की स्पर्श भावनाओं पर घोर कुठाराघात ही माना जाएगा। यदि किसी की मूल भावनाओं पर आघात होगा तो कुछ ऊल-जलूल होने की सम्भावनाओं को आमंत्रित करना ही माना जाएगा।
गांव का आदमी खेत की मिट्टी का बना होता है, शहर के आदमी में मजबूत सिमेंट का जोड़ होता है। गांव का आदमी किसी से डरता नहीं है। गांव का आदमी कच्चे मकान में भी निडर होकर रहता है। शहर का आदमी और वो भी स्मार्ट शहर का आदमी हो तो मजबूत सिमेंट और स्टील के सरिए वाले मकान में भी असुरक्षित महसूस करता है। गांव का आदमी इस हद तक भोला होता है कि बस खेत में बीज डालता है, फसल की चिंता नहीं करता।उसके खेत का बीज रामलीला मैदान का स्पर्श पा चुका होता है, वो शायद इसीलिए इतना बेफिक्र होता होगा ।
ऐसा कहा जाता है कि भारत गांव में रहता है, लेकिन अब गांव दिल्ली में रहता है। इस गांव में जो भी जन्म लेता है वो रामलीला मैदान की मिट्टी का बना होता है। जो लोग नहीं जानते उनसे पूछा जाना चाहिए कि बताएं! गांव का आदमी किस मिट्टी का बना होता है?
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