Tuesday 12 January 2016

रावण दहन

ज्ञान ऐसी चीज है जिसे जितना बाटो उतना ही बढता है। ये बात खुद में एक बड़े ज्ञान की बात है। ज्ञानप्रकाश अपनी बात यहीं से शुरू करते हैं। हाल ही में कुछ शानदार दशहरा पार्टी आयोजित की गयी। बालीवुडहालीवुडऔर लेटैस्ट एलबम्स के नम्बर्स “गानों पर सब झूठ पर सत्य की विजय को सैलीब्रेट कर रहे थे। गोलगप्पे, चाट पकौडी, गुंझिया, चीला जैसे कुछ लज़ीज व्यंजनों की स्टाल वातावरण को लज़ीज बना रही थी। बच्चो की रचनात्मकता बढ़ाने के लिए बच्चो को खुद गेम्स की स्टाल लगाने का मौका भी दिया गया था, जिन स्टाल्स पर बच्चो ने कैसीनो टाइप, प्लेइंग कार्डस आदि के बेहतरीन गेम्स बनाये हुए थे। उधर 15 फुट का शानदार रावण जाने किस बात पर इतना बारूद अपने अन्दर भरे फटने को तैयार खड़ा थाजैसे किसी बात से बहुत नाराज हो। रावण दहन के बाद के लिए हजारी लड़ी, स्काई शाट्स का भी प्रबन्ध था ताकि आसपास के इलाकों में भी रावण दहन की धमक महसूस की जा सके और उन्हे मैसेज दिया जा सके कि यहाँ सत्य की विजय को सैलीब्रेट करने वाले लोग रहते है।
अचानक ज्ञानप्रकाश पार्टी में आ धमके और जैसे ही ज्ञानप्रकाश जी ने अपने ज्ञान का बल्ब दमकाया, भली-चंगी चलती पार्टी की बत्ती बुझा दी।इधर ज्ञानप्रकाश रावण के चरित्र पर प्रकाश डाल रावण के चरित्र को चमका रहे थे, उधर पार्टी की चमक धूल चाटती नज़र आ रही थी। ज्ञानप्रकाश जी समाज के सम्मानित लोगो में थे, सो कोई कुछ कहने की हिम्मत भी नहीं जुटा पा रहा था। लेकिन जैसे ही ज्ञानप्रकाश ने रावण को अहंकार का पुतला बताया और उसके अहंकार को उसके कुल के विनाश का कारण बताया, पार्टी में हडकंप मच गया। रावण का पुतला बोल उठा, क्या ज्ञान बाट रहे हो, चारो वेदो का ज्ञाता मैं, लंका को सोने की लंका बनाने वाला मैं,अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए मर मिटने वाला मैं, परायी स्त्री को माता के समान रखने वाला मै, फिर मैं अहंकारी कैसे हो गया। मेरा पुतला फूंकने वालो चार श्लोक पढकर तुम ज्ञानप्रकाश बन जाते हो, आज तुम ग्राम में सोना जुटाते हो खुद अपनी बहन बेटियों को असुरक्षा की भावना में जीने को मजबूर करते हो और मुझे अहंकारी बताते हो।
रावण का सुलगता बारूद कुछ कह रहा था कुछ सवाल खड़े कर रहा था, पार्टी में मौजुद सभी लोग अचम्भित थे लेकिन खुश थे। रावण अपने ही बारूद से धूँ धूँ कर जल रहा था, कुछ के चेहरे पर एक डर था, कुछ के चेहरे पर खुशी, कुछ रोमांचइन सबके बीच के बीच रावण के रूप में बुराई अपने प्रतीक के रूप में दम तोड़ रही थी। रावण के धराशायी होते ही जोरदार आतिशबाजी ने रोमांच को दूना कर दिया और बुराई पर अच्छाई, झूठ पर सत्य की विजय की पार्टी फिर से अपने रुमानी दौर की तरफ आगे बढने लगी। रावण विदाई ले चुका था और अच्छाई बुराई पर चर्चा आरम्भ हो चुकी थी, शाही पनीर जीतता हुआ दिखायी दे रहा था लेकिन महिला वर्ग के आते ही गोलगप्पे अपनी जीत का दम भरने लगेफीकी होने के कारण दालमखनी पहले ही दम तोड़ चुकी थी। कैशीनो का गेम ताश के पत्तो से कहीं ज्यादा बड़ी रकम इकट्ठी कर अपनी जीत पक्की कर चुका था। मीठे हनी से गानों ने बालीवुड के गानों को धूल चटा दी।इस दशहरा पार्टी में बहुत कुछ जीता और हारा गया। अफसोस जितनी आवाज पटाखो और हनी गानों की बढती गयी रावण का अट्ठाह्स भी उससे कई गुना बढता गयाजो शायद ज्ञानप्रकाश के बहरे कानों तक नहीं पहुँच रहा था।

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