Sunday 10 January 2016



आम आदमी की चिंता
आज जितनी भी समस्याएँ हैं, उनकी वजह केवल आम आदमी है। अब तो इसने बेफिक्र होकर धुंआ उड़ाना भी छोड़ दिया है। लापरवाह तो ये पहले से ही था लेकिन धुंए से पता लग जाता था कि बेफिक्री कहाँ सुलग रही है। जब इसे खुद अपनी परवाह नहीं है तो भी न जाने क्यूँ ये नीतिज्ञ इनकी चिंता में आधे हुए जा रहे हैं।  ए.सी. में ठंडे पड़ चुके नीतिकार जब आम आदमी के बारे में सोचते हैं तो उनका दिल आमग्लानि से भर जाता है, अंदर एक ज्वाला भड़कने लगती है। आम आदमी की चिंता में उनका पसीना और आँसु उनके साढे पांच सौ रुपये के परफ्यूम की मिट्टी खराब कर देते हैं लेकिन आम आदमी को दाल का लेकर हाय तौबा मचाने से फुरसत नहीं है।
आम आदमी की सबसे बड़ी समस्या ये है कि ना वो ट्विटर को हैंडल करता है, ना फेसबुक पर ही अपना ज्ञानवर्धन करता है। सोशल मीडिया पर सब  आम आदमी के चूल्हे की रोटी से बेटी की विदाई का कोरसगान कर रहे हैं। ये तो इस बात से भी अनजान है कि जिसे चुनाव में वोट देकर ये भूल गया, इसकी बदहाली ने उनकी नींद उड़ाई हुई है। आम आदमी को तो अखबार में पुरे पेज के विज्ञापन पढने तक की फुरसत नहीं है। ये विज्ञापन भी ठीक से पढ़ ले तो उसे पता लग जाए कि वो कितने बुरे दौर से गुजर रहा हैउसे इस बुरे दौर से निकालने के लिए कैसे पूरी कायनात प्रयासरत है। बस्तियों की बदहाल गलियां अब आर्ट  गैलरी तक पहुँच गई हैं। गलियां अब गैलरी की मॉडर्न आर्ट बन गई हैं। इन गलियों का फॉर्च्यून बदलने वाली फॉर्च्यूनर गैलरी का भ्रमण कर इन गलियों की जरूरतों का जायज़ा ले रही हैं।
आम आदमी को जब वस्तुस्थिति की जानकारी कराई गई तो उसकी आँखे भर आई। उसे आज तक पता ही नहीं था कि उसकी वजह से चहुओर रुदाली का माहौल है। वो कहने लगा कि इन सब की चिंता मुझसे देखी नहीं जा रही। मुझे अपनी बदनसीबी पर रोना आ रहा है कि जीते-जी मैं इनकी चिंता को दूर करने के लिए चाह कर भी कुछ नहीं कर सकता। मुझे आत्मग्लानि हो रही है। लगता है इनकी चिंता मेरी चिता के बाद ही दूर होगी।

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