Tuesday 12 January 2016

आम से अमिया हुई क्रिकेट किसके लिए 

बालीवुड 
मे भले ही मुन्नी अमिया से आम होकर बदनाम हो गयी हो लेकिन मुन्नी बच्चे की जुबा पर राज कर गयी। क्रिकेट मे ये फार्मुला बिल्कुल उलट कर प्रयोग हुआ है, क्रिकेट पचास के आम से बीस की अमिया हो गया है और हर किसी के दिमाग पर छा गया है। दिन के उजाले वाला सभ्यता का खेल क्रिकेट, आज दूधिया रोशनी मे भव्यता का क्रिकेट हो गया है। अमिया क्रिकेट मैदान पर लाखो की भीड जमा करने मे सक्षम हैजब बात लाख की हो तो शाख का क्या अचार डालना है? आमक्रिकेट आज सभ्यता के मैडल सा खुंटी पर लटका दिखायी देता है।

आम क्रिकेट  उस उन्नीसवी शताब्दी के ब्लैक एण्ड व्हाइट टीवी जैसा हो गया है, जिसका स्विच आन करने के बाद जब तक टीवी गरम हो तब तक तो चित्रहार का एक गाना भी निकल जाय। आमक्रिकेट मे पहले पाच ओवर बल्लेबाज को गरम होने मे लगते थे, उसके बाद स्लिप से फिसलते-फिसलते चुपचाप सभ्यता का परिचय देते हुए गली से अपने गतव्य पर अग्रसर हो जाते थे। स्क्रीन दाये बाये का झमेला, पिच ठोक-ठोक के पिलपिला कर देना, पहली गेंद को शिष्टाचार के नाते रोकनासाथी खिलाडी से चार बात छोकना, ऐसे सभी अनैच्छित चौचले आज के अमिया क्रिकेट मे वर्जित है। अमिया क्रिकेट मे इधर बल्लेबाज आते ही बालर को ठोकता है, उधर सिद्धु जी को अपना चुटकला ठोकते हैऔर लाखो दर्शक ताली ठोकते हैसीधे ठा ठा।
इस अमिया क्रिकेट मे बालर की हालत एक वोटर जैसी हो गयी है, बालर जमे हुए बल्लेबाज को बोल्ड करने के बाद पल भर की खुशियाँ भले मना ले लेकिन आने वाला बल्लेबाज मैदान मे आते ही महीनो से पिंजरे मे बन्द भूखे शेर सा झपट पडता है और बालर की हालत ऐसी हो जाती है जैसे शोले का हस्तविहीन मजबूर ठाकुर। बालर छक्के पर छक्के खाकर पहले ही झुंझलाया हुआ होता है और अल्पचीर सुसज्जित चीयर बालाए जोरदार चीयर करके नाजुक दौर से गुजर रहे बालर के जले पर नमक छिडकने का काम करती है। बल्लेबाज को बोल्ड करने के बाद बालर चीयर बालाओ की तरफ अपना विशेष नृत्य करके अपनी खीज उतारता है। हर छक्के के बाद बल्लेबाज मस्त और बालर पस्त हो जाता है, इस बीच चीयर बालाए इतना पसीना बहा देती है जैसे बल्लेबाज ने बस बल्ला घुमाया हो और इन्होने ही भाग-भाग कर छ रन पूरे किये हो।
अल्पचीर सुसज्जित चीयर बालाये, सिद्धु जी और बल्लेबाज तीनो अन्दर ही अन्दर ऐसे तरबूज से लाल हुए जाते है, जैसे भीड उन्हे ही सबसे ज्यादा चीयर कर रही है। रैड कारपेट की चाह वाले आज कारपेटछोड कारपोरेट की वाह वाह पा रहे है। खिलाडी, बालीवुड और कारपोरेट तीनो के अदभुत संगम मे डुबकी लगाकर, जिसका मौका लग रहा है, वह पुण्य प्राप्त करने से नही चूक रहा है, ये मेला कोई सोलह साल मे थोडे ना लगता है, ये तो हर बरस का मेला है। ये खेल है, खेला है या झमेला है, जो भी है, आज प्रशंसको का बडा मेला है।

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