Tuesday 12 January 2016

कवर है तो कवरेज है 

एक बार चेहरे पर क्रीम पाउडर सही से लपेट लीजिए, फिर क्या है दुनिया में चाहे जिसे लपेट लीजिए। चेहरे पर क्रीम पाउडर लपेटने में कोई कौताही क्यों बरतनी, काले पीले नीले जितने रंग हैं सब के सब झोंक देने चाहिए। इन रंगो को रंग समझना नादानी ही कहा जाएगा, ये रंग नही है ये तो मिर्च है जो इन रंगो को देखने वाले की आंखो में झोंकी जाती है। इस रंगीन चेहरे को देखने वाले की आंखो में रंगो की मिर्ची झुकने के बाद देखने वाले को रंगीन चेहरे के अलावा कुछ भी दिखाई नहीं देता। आज की सरपट दौडती जिन्दगी में इतनी फुरसत किसको है कि बात की तह तक पहुंचे, आज की दुनिया में चेहरे पर चढ़े कवर के हिसाब से ही कवरेज मिलता है। कवर की बढती कवरेज की सरपट दौड़ ने सब को पट कर रक्खा है। चेहरे पर कवर लगा कवरेज पाने का अधिकार नेताओं अभिनेताओं तक ही सीमित क्यों रहे, आज स्वतंत्र होने के नाते हर कोई चेहरे पर अपना नया रंगीन कवर लगाकर कवरेज पाने के लिए स्वतंत्र है।
इन्दीवर का लिखा गीत “दिल को देखो, चेहरा न देखो चेहरे ने लाखों को लूटा हाँ, दिल सच्चा और चेहरा झूठा” बेहद खूबसूरत है लेकिन आज काफी कुछ बदल चुका है। आज चेहरा ही देखा जाता है, चेहरे की किताब "फेसबुक" ही आज की सच्चाई है। चेहरे की किताब हिट जाती है या पिट जाती है, यह काफी कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि फेसबुक के कवरफोटो में किसी बड़े नेता या अभिनेता के साथ नज़र आ रहे हैं कि नहीं। फेसबुक के जमाने में टाइमलाइन अर्थात इतिहास जानने की फुर्सत किसी को नहीं है। कवर फोट़ो पर निर्भर करता है कि फेसबुक प्रोफाइल को कवरेज दिलाने में कितनी कारगर होती है।यदि फेसबुक की इलैक्ट्रानिक किताब से कवरेज नहीं मिलता तो फिर प्रिंटिड किताब की तरफ बढा जाता है।
किताब में लिखा क्या है ये बाद की बात है लेकिन किताब का कवर और शीर्षक मे जबरदस्त आकर्षण होना चाहिए, कवरेज में कवर का ही खेल है। यदि किताब से भी कवरेज नही मिलता फिर भी घबराना क्या, यहाँ सम्भावनाएं खत्म नहीं होती। एक किताब से कवरेज नहीं मिलता तो दूसरी किताब लिखी जा सकती है शीर्षक होगा वन बुक इज नाट एनफ”, फिर भी कवरेज नही मिलता तो एक किताब लिखी जा सकती है बुक रिटर्न”, फिर एक किताब किताबो के संकलन की भी लिखी जा सकती है “नाट जस्ट वन किताब”, इसके बाद भी अनेकानेक किताबों की सम्भावनाएं हैकिताब ही किताब” आदि आदि।
किताब से कोई हर्ट हो तो हो जाय कोई हर्ट होगा तो कोई फ्लर्ट होगा। किसी की त्याग भावना में ततैया लगता है तो लग जाय,उन्हे क्या किसी ने मना किया है कि वो किताब ना लिखे। वो भी अपनी एक किताब लिख दे और कर दे अपनी त्यागी भावना को सिद्धआने दीजिए बाजार में किताब की एक और किताब, किताब ही किताब।

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