Sunday 10 January 2016

ठंडी का कैमिकल रिएक्शन (व्यंग्य)
 
एक तरफ सर्दी बढती जा रही है और दूसरी तरफ राजनीति में गरमाहट आ रही है। दिल्ली में इन दिनों मानो ठंडी वनीला आइसक्रीम पर राजनीति अपनी हॉट चॉकलेट डाल कर परोस रही हो। बाक़ी के चिंतक टीवी पर चिपकेहुए, मूगफली संग आइसक्रीम विद् हॉट चॉकलेट का आनन्द ले रहे हैं। कुछ लोग पुतला फूको कार्यक्रम आयोजित कर ठंडी में राजनीति का तड़का लगा रहे हैं। पुतला दहन से राजनैतिक गर्मी के साथ शारीरिक गर्मी की प्राप्ति भी कर रहे हैं। ठंडी के मारे पति-पत्नी ने सुबह की चाय बनाने के लिए झगडे़ आम हो गए है। वैसे एक खास सलाहकार की मदद से व्यवस्था पटरी पर आने की उम्मीद है। अब मिस्टर कूल ने चाय बनाने के लिए आॅड-इवन दिन तय कर लिए हैं।
क्या कोई ऐसा साफ्टवेयर नहीं है कि एडिटिंग करके दिस अम्बर को दैट अम्बर नहीं बनाया जा सकता, जिसमेंनियंत्रण की सभी सीमाएं लांघ चुका हड्डियों का 'वाइब्रेसन मोड़' से अपने 'नॉर्मल मोड़' पर आ जाएं। टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो रही है लेकिन इस ठंड से निपटने का कोई माक़ूल इंतजाम शायद इस टेक्नोलॉजी के पास भी नहीं है। मिस्टर कूल के पास  फ़ोटो को कूल या हॉट लुक देने की हजारों मोबाइल ऐप वाला स्मार्ट फोन है। लेकिन इस स्मार्ट फोन की सच्चाई आज संदिग्धता के घेरे में है। इस स्मार्ट टच फोन के लिए एक ऐप ऐसी लॉन्च नहीं हुई जो इस ठंडी से राहत दे सके। दिल्ली में तो टच पाते ही ईमानदारी का क्लोन तैयार हो जाता है, फिर ये कैसा स्मार्ट टच फ़ोन है एक तो ये ठंडी ऊपर से पेरिस सम्मेलन की अनवरत बर्फबारी ने गर्मी के सारे रास्ते बंद कर दिए। प्रदूषण से जो थोड़ी गर्मी आने की उम्मीद थी, उस पर भी इस पेरिस सम्मेलन ने बर्फ का कफ़न उठा दिया। 
ना स्मार्ट फोन, ना बॉलीवुड और ना ही राजनैतिक गरमाहट मिस्टर कूल की इस ठंडी को दूर कर पाई। कुछ दूसरे रास्ते तलाश करने के लिए भटकते हुए आखिर कुछ ऐसी जगह खोजी गई, जहां ठंडी का नामोनिशान नहीं था। झोपड़ी के बाहर खेलते बच्चे जिनके नन्हे कदमों में गर्म जुर्राबे तो दूर चप्पले तक नहीं थी, मेहनत करते मजदूर की पसीने से लतपत कमीज,  खेतों में अपनी फसल को पानी देते किसान को देखा तो पाया कि उनके आसपास ज़रा भी ठंडी नहीं थी। यदि यहाँ ठंडी आ भी जाती तो ये नज़ारा देख शायद कपकपा जाती। मिस्टर कूल को अब आभास होने लगा कि ठंडी है नहीं, उसके ठाली दिमाग में ठंडी का कोई कैमिकल रिएक्शन हो गया है।

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