ये जिम्मेदारी मेरी नहीं! (व्यंग्य)
आॅफिस की समयबद्धता के लागु होने में ट्रेफिक जैम और टायर का पन्चर ही मुख्य विलेन हैं। इसके लिए किसी पर लेटलतीफी का लांछन लगाना अमानवीय है। बच्चों को बिगाड़ने में टी.वी., मोबाइल फोन और फास्ट फूड जिम्मेदार हैं। माता-पिता की परवरिश का इससे कोई सरोकार नहीं है। आलु के पराठों में से आलु बाहर आ जाए।इसकी एकमात्र वजह आलु की खराब किस्म हैं। आटा कैसा गुथा, इसका कोई योगदान नहीं है। रसगुल्ले कढाई में डालते ही अपना अस्तित्व खो दें। इसके लिए खोए की मिलावट जिम्मेदार है। खोए और मैदा के अनुपात का इससे कोई लेना-देना नहीं है। स्वास्थ्य खराब होने के पीछे खराब सब्जियां, मिलावटी दूध और पर्यावरण का प्रदूषण खलनायक की भुमिका में है। अपनी मुक्ति के लिए प्रयासरत, आरामपरस्त शरीर में कैद पसीना बिल्कुल जिम्मेदार नहीं है। हिन्दी को आज इसलिए विस्तार की जरुरत पड़ रही है क्योंकि हिन्दी पाठक नहीं रहे। इसके लिए लेखनी बिल्कुल जिम्मेदार नहीं हैं।
दावत के कार्यक्रमों में हलवा या रसगुल्ला कम पड़ने की स्थिति में, इन्हें जरुरत से ज्यादा गर्म कर व्यवस्था बनाई जाती है। फ्रूट चाट के फलों का रंग देखकर लिफाफे के अन्दर की दान सामग्री का रंग तय होता है। पुलिस को देख ट्रेफिक सिग्नल पर ट्रिप्लिंग का डब्लिंग में रुपांतरण हो जाता है, हैलमैट खुद ही उछल कर सिर पर सवार हो जाता है। सड़क के डिवाइडर और सरकारी परिसर में बनी माॅडर्न आर्ट पाषाण काल के असभ्य मानव के ही अवशेष है। आज का सभ्य आदमी तो केवल एअरपोर्ट और फाइव स्टार होटल की चमकती दिवारों में अपनी जैन्टल मैन की छवि बनाता है। हजारों की सरकारी नौकरी के लिए लाखों की प्राइवेट नौकरी छोड़ देशसेवा में कोई भी अपना महत्वपूर्ण योगदान देने से नहीं चूकता।
इस व्यवस्था के लिए अमूक के अलावा सब जिम्मेदार हैं। इस लचीलेपन में ही स्वतंत्रता की उजली छवि उभरकर आती है। व्यवस्था वही सही है, जो मनमाफिक कृत्यों की आजादी दे। नियम कानून से चलने में घुटन होती है। कठोर फैसलें आजादी पर सीधा कुठाराघात हैं। जातिवाद, भ्रष्टाचार, परिवारवाद का चुनाव व्यवस्था के शिर्षस्थों की देन है, क्योंकि इन्हे चुनाव में वो ही चुनते आए हैं। आफिस की समयबद्धता हो या देशसेवा में योगदान ऐसे जुमले लचीली व्यवस्था के साथ मुफ्त मिलते है। इनका सदुपयोग अन्तर्रात्मा की अशुद्धि पर पर्दा डालने के लिए किया जाता है।व्यवस्था को कोसकर, आत्म सुखानुभूति की प्राप्ति होती है, ये जरुरी है। व्यवस्था चरमराई है भी तो क्यों! ये तोव्यवस्थापक ही जाने। ये जिम्मेदारी मेरी नहीं!
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