Tuesday 12 January 2016

क्रान्तिकारी भैंस (व्यंग्य)

भैंस आज पालतु नहीं है। भैस तब तक पालतु थी, जब तक पति-पत्नी उसे मिल कर पालते थे। आजकल पति-पत्नी के लिए मिलकर बच्चे पालने मुश्किल हो रहे है, भैंस क्या खाक पालेंगे?पति-पत्नी के बीच आज भैंस के लिए कोई स्थान नहीं है। आज भैंस तबेले में पलती हैं। तबेले में भैंस पालने वाले बडे़-बडे़ इंटरप्यिनोर होते है। भैंस अब घरेलु नहीं रही, बल्कि व्यवसायिक हो गयी है। भैस का दूध अब बलशाली बनाने के काम नहीं आता, भैस का दूध अब वैभवशाली बनाने के काम आता है। भैंस का गोबर अब गोबर-धन नहीं है, भैंस का गोबर अब धनकुबेरो का धन है।
भैंस बहुत करिश्माई होती है, ये दीखने में जितनी काली होती है लेकिन इसका दूध उतना ही सफेद होता है। इस दूध से नहाकर बहुत से पूत जन्म लेते हैजन्म के समय तो सब पूत ही होते हैबाद में कोई कपूत हो जाए, इसके लिए भैंस को जिम्मेदार ठहराना कदाचित उचित नहीं है। "काला अक्षर भैंस बराबर" की बात पुरानी हो गयी। आज भैंस का दायरा काले अक्षर तक सीमित नहीं रहा है। भैंस अब इलैक्ट्रानिक हो गयी है। इलैक्ट्रानिक तबेले में एक से बडी़ एक भैंस मिल जाएगी।
आफिस से थके हारे आने के बाद, सभी इन भैंसो का दूध पीकर,खुद को तरोताजा तो महसूस करते ही है, बल्कि अपने अल्पज्ञान का महाज्ञान में रूपान्तरण भी कर लेते है। जैसे-जैसे भैस का नम्बर दस तक बढता है, भैस का दूध गाढा होता चला जाता है। ऐसे दूध में पीने से पहले थोडा़ पानी मिला लेना अच्छा रहता है। आठ से नौ फिर नौ से दस तक, भैंस निरन्तर आगे बढते हुए, अपने पूरे शबाब पर आ जाती है। जब तक भैंस दस तक पहुचती हैभैस क्रान्तिकारी हो चुकी होती है और तब भैंस का दूध बहुत ही क्रान्तिकारी परिणाम देने वाला हो जाता है।थोडा़ पानी मिलाकर क्रान्तिकारी भैंस का दूध जो भी पीता है, वह महाज्ञान की प्राप्ति कर लेता है और भविष्य में बहुत ही क्रान्तिकारी परिणाम देने वालो के रूप मे  जाना जाता है।

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