Tuesday 12 January 2016

अंधकार है अंधे नही है


आंखे बन्द करना ही काफी नही है, छोटी-बडी सभी बत्ती बुझा दो, जर्रा जर्रा अंधेरे के आगोश मे होना चाहिए, अच्छी नींद के लिए ये सब करना जरूरी है। ऐसी रात का अंधियारा क्या बुरा है जिसमे कुछ खुशनुमा सपने हो, कुछ रहनुमा से अपने हो, ऐसे अपने सपने जपने मे अपना या किसी का क्या जाता है, आता जरुर है, आता है “एक अहसास”  रहनुमा की शक्ल लिए महानुभावो को नुमाइश से रिहाइश मे देखने का,  अहसास है तो क्या ? ये तो मेरे अपने अंधियारे के परोसे अहसास है, उजाले तो आते ही ये भी छीन लेंगे । 
रात काली है तो क्या हुआ ये तो देखने वाले की दूषित मनोवस्था का दोष है जो काले को बुरा मानता है, ये काली रात ही तो है जो दिन महीने साल बीत जा्ने पर भी नही बदलती है। अच्छे बुरे दिन सभी के आते है, लेकिन क्या कभी किसी को कहते सुना है कि जीवन मे अच्छी बुरी राते आती रहती है। इस रात की सुबह नही, हो भी क्यो? ना मुझे ना अंधेरे को शिकायत फिर क्या करेगी रात?
पाँच साल बाद आती है ये रात, जो ऐसे ऐसे सपने दिखाती है कि हकीकत भी झेपने लगती है। सांछ ढले जैसे जैसे उजाला अपनी लालिमा की तरफ बढता है, चर्चाए जोर पकडने लगती है, “अबकी बार दुल्हा असरदार”, “दुल्हा असरदार नही दुल्हा समझदार हो” आदि आदि, फिर सेहरा बाँध कर अपनी बडी-बडी कसमो वादो की बारात लेकर दुल्हा आ ही जाता है। फिर क्या घराती, क्या बाराती सब लग जाते है नाचने और बाचने “छटने ना पाए अंधकार, अबके दुल्हेराजा की सरकार"। कुछ आतिशबाजियाँ भी इस बारात का अभिन्न अंग होता है, भले ही इन आतिशबाजियो के धुए से घराती बाराती खासते खासते परेशान हो जाय और कभी कभी कुछ अनहोनी का शिकार भी भी क्यो ना हो जाय, लेकिन सभी अपनी अपनी पसंद के अनुसार इस आतिशबाजी से अपना मनोरंजन करने से नही चूकते। 
ऐसे ही रात मे दुल्हे राजा सपने मे रूप रखकर आते है और सारी की सारी दहिया पीकर चले जाते है। कसमो वादो की बारात मे झूमते घराती ये अपनी छाछ संग रुखी सूखी रोटी भी गंवा बैठते है। तारो की छाव मे बाबुल की  लाडली जैसे हाथ से रपटती हुई, उंगली पर अपना निशान बनाती, दुल्हेराजा के घर को स्वर्ग बनाने निकल जाती है। बाबुल दुल्हेराजा की तरफ होठ हिलाते बिना स्वर के अपने अन्तर्मन का अहसास करता है और अपनी लाडली को बाबुल के आंगन मे पाये संस्कारो पर चलने का रास्ता बताते हुए, मुँह फेर लेता है। 
स्वर्णीम युग की तलाश मे चंदा की चांदनी मे बटोरी चांदी भी काली रात सी काली पड जाती है और रह जाती है तो एक तलाश, एक और अंधेरी रात की, सपनो की सैगात की, एक नये दुल्हे के साथ की, फिर कुछ कसमो वादो की बारात की। अंधेरो मे आये सपने बन्द दरवाजो से आते है, ये चोर सपने होते है, दिन के सपनो को स्वीकार करना होगा, यही सच्चे सपने है। सपनो को सच्चा करना है तो इन्हे अंधकार से निकालना होगा, अपने सपनो को उजाला दिखाना होगा। कसमो वादो की बारात नही, आतिशबाजियो की सौगात नही, विचार मंथन और मुद्दो पर बात कर, अंधकार के अंधेपन से पार पाकर उजालो की हकीकत को स्वीकार कर  अपने सपनो को सीचना होगा।

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