Tuesday 12 January 2016

आइसक्रीम विद् हाटॅ चाकलेट

इधर ठंडी अपनी आहट महसूस कराने में लगी है, उधर चुनाव और दिपावली अपनी गरमाहट का सिक्का जमाने में लगे हुए है। ठंडी में ठंडे पानी संग गाना गाते हुए नहाने का अपना अलग ही मजा है। भले ही ठंडी का समय हो गया है लेकिन अभी ठंडी को शायद किसी का इन्तजार है। हुदहुद का बहाना लेकर ठंडी ने अपनी दस्तक दी लेकिन शायद दिवाली और चुनाव की गरमाहट को भापते हुए, हुदहुद और ठंडी ने अभी अपनी हद में रहना ही सही समझा। ठंडी की ठंड पर चुनाव और दिपावली की गरमाहट का ऐसा मजा आ रहा है कि जैसे वनीला की आइसक्रीम पर हाॅट़ चाॅकलेट लपेटकर सर्व की गयी हो।
चुनाव होगा तो कुछ सब अपने-अपने विचार भी बताएंगे, जनता को सोचने के लिए मुद्दे भी तो चाहिए ताकि जनता सही रूप में मुल्यांकन कर सके कि अबकी बार किसे सत्ता सौपनी है। जनता इतनी खाली तो है नहीं कि पिछले पाँच साल का पूरा मुल्यांकन कर सकेपाँच साल सत्ता पक्ष ने क्या किया, इसका विश्लेषण करने के लिए जनता विपक्ष भी चुनती है। चुनाव आने पर पर विपक्ष की जिम्मेदारी बनती है कि वह जनता को पाँच साल का पूरा-पूरा  हिसाब दे। यदि चुनाव में गरमाहट नहीं है तो ये तो पूरी तरह विपक्ष की नाकामयाबी ना मानें तो फिर क्या मानें, विपक्ष की जिम्मेदारी है कि मुद्दे उठाए और चुनाव में गरमाहट पैदा करे। वोटिंग होते ही एग्ज़िट पोल की चटर-पटर शुरु हो गयी है। कयासबाजों ने कयासों का काढ़ा पिला-पिलाकर खोपड़ी  को गरम कर दिया है। कयासें लगायी जा रही हैं कि कौन-सा स्काई शाट ज्यादा ऊपर जायेगा और आसमान में फट़ने के बाद किसका कितना फैलाव होगा। जल्द ही ये भी पता लग जायेगा कि कौंन इन्टरनेशनल खिलाड़ी निकलता है और कौंन अपने भोलेपन का खुद शिकार होता है। हुदहुद का शरद को लाने में जरूर हाथ है लेकिन अभी बरसात का असर पूरा-पूरा है, फल-फूल अपने पूरे शबाब पर है। वैसे भी अब राजनीतिज्ञो को ये समझ ही लेना चाहिए कि जितना कीचड उछाला जा रहा है कमल उतना ही बढ रहा है। समय समय की बात है जहाँ कल तक सब गठबंधन की राजनीति के पक्षधर थे, आज गठबंधन तोड़़ने में ही सम्भावनाओं को तलाश रहे हैं। वैसे ये भी ठीक ही है शायद, यदि सीट शेयर पर कोई नतीजा नहीं निकल रहा तो परिणाम के बाद सत्ता शेयर का रास्ता तो खुला रहता ही है।
पटाखे या झालरो की सजावट की बात नहीं है, जिसकी वजह से दीपावली ठंडी में गरमाहट पैदा कर रही है, दीपावली की गरमाहट के पीछे कई कारण और भी हैं।जुआ यूँ तो कोई भी भला सामाजिक मानुष सही नहीं मानता लेकिन क्या करें इसका सगुन मेला करना भी जरुरी है। महाभारत के प्रसंग से सीख लेनी चाहिए कि जुआ खेलते समय अपने ऊपर कान्फीडैन्स में जितनी मजबूती होगी, जूए में जीतने की सम्भावना भी उतनी ही प्रबल होगी।महाभारत के प्रसंग से यदि कुछ सीखना है तो वह है "कान्फीडैन्स की प्रबलता का महत्व"। अब बात कान्फीडैन्स की ही है तो उसके लिए मदिरापान भी जरुरी हो जाता है। यदि कोई कहता है कि मदिरा के सेवन से स्वास्थ पर बुरा असर पडता है तो वह बिल्कुल गलत कहता है, बल्कि कहना चाहिए कि वह पूर्णतः अज्ञानी है। शरीर का क्या है, ये तो केवल एक पहनावा है, जरुरत तो अन्तरात्मा से शुद्ध होने की है। आत्मा अमर है, ना आत्मा मरती है ना कोई इसे मार सकता है। इसलिए बाहरी सफाई जैसी भी हो एल्कोहल से आन्तरिक शुद्धीकरण के साथ कान्फीडैन्स मजबूत कर ही दीपावली मनाने की जरुरत है।
आज बदले परिवेश में क्या त्यौहार और क्या चुनाव सब बदल रहा है, तो फिर मौसम बदल रहा है तो क्या गलत कर रहा है। उत्तराखण्ड हो या जम्मु काश्मीर या फिर ताजातरीन हुदहुद कहीं ना कहीं कुछ बेहुदे बदलावों की तरफ इशारा करते दिखायी देते हैं। बाकी जो है सो है ही, जब तक चल रहा है तब तक आइसक्रीम विद् हाटॅ चाकलेट का आनन्द लीजिए।

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