Tuesday 12 January 2016

सतयुगी नही अब मानवी समुन्द्र मंथन

समुन्द्र केवल सतही विशाल नही है दिल से भी विशाल है, समुन्द्र के अनन्त मंथन सम्भव है। सतयुगी समुन्द्र मंथन अन्तिम समुन्द्र मंथन नही था। सतयुगी मंथन मे जो भी निकला, सब देवताओ और दानवो मे बँट गया। बेचारे मानवो को कुछ भी नही मिला, मानव पूरी तरह खाली हाथ रह गये। बस उसी दिन मानवो ने ठान लिया कि अब हम खुद ही समुन्द्र मंथन करेंगे और जहर, अमृत, रत्न, सुरा जो भी निकलेगा, वो किसी को नही देंगेउसका भोग हम मानव खुद करेंगे। युगो से चल रहा मंथन, आज भी जारी है, यही समुन्द्र की विशालता है। आज भी समुन्द्र मंथन मे सुरा निकलती है, मोती रत्न निकलते है, जहर निकलता है, अमृत निकलता है। मानवो द्वारा क्रियान्वित समुन्द्र मंथन के बाद अपनी अपनी योग्यता के अनुसार या जिसके हाथ जो लग जाय, वह उसे लेकर निकल लेता है। आज का मानव समुन्द्र मंथन जनित सभी तत्वो को बराबर सम्मान के साथ ग्रहण करता हैआज मानव सर्वग्राही है।
हालिया समुन्द्र मंथन कई मायनो मे एतिहासिक रहा। हारना तो कोई भी नही चाहता, सब जीतना ही चाहते है। कुछ मानव सबको हरा दिग्विजयी बनना चाहते हैउनकी दिग्विजय होने की चाहत इतनी तीव्र होती है कि वे समुन्द्र मंथन का भी इंतजार नही करते और सीधा निशाना अमृत पर साधते है। सभी समुन्द्र मंथन मे लगे रहे और उधर वे अपना अमृत लेकर पहले ही दिग्विजयी महसूस करते है।इस मंथन मे बहुत ईमानदारी अपनाई जाती है, नारायण स्वरुप उज्जवल मानव को अपने पुराने मंथन का फल कई दशक के बाद मिला, पहले तो उन्हे खुद यकीन नही हुआ, लेकिन परिक्षणोपरान्त सहर्ष अपने अपने उज्जवल जीवन के लिए स्वीकारोक्ति दी। बडे समुन्द्री मंथन मे कुछ बलिदान भी दिये जाते है, ऐसे बलिदानी मानव के हिस्से मे केवल जहर आता है, जहर पी पीकर अन्दर से उनका गला भी नीला पड चुका है और चेहरा लाल। उनके लाल चेहरे से निकली वाणी भी दहकती लालवाणी लगती थी, काफी मशक्कत और मानमुनव्वल के बाद लालवाणी को शान्त किया जा सका। समुन्द्र मंथन की रस्सी बटते-बटते उनके हाथ मे ठेठ पड गयी, वो हर बार कोहीनूरी राजमुकुट पर अपना दावा ठोकते है और हर बार कोहीनूरी राजमुकुट किसी दूसरे के पास चला जाता है। बलिदान कभी व्यर्थ नही जाता, हो सकता है उस पीढी को उसका फायदा ना मिले लेकिन अगली पीढी को ही सही, फायदा तो फायदा है। स्वराज होगा तो कम से कम कल नाम लेने और महानता का गुनगान करने के लिये कोई तो होगा। ऐसा भी नही है कि आज सभी मानव इस समुन्द्री मंथन मे हिस्सा लेते है, आम मानव को वैसे तो कोई रोकटोक नही है लेकिन ये उसके बसके बात भी नही है। यदि समुन्द्री मंथन मे कुछ पाने की इच्छा है तो महान बनना पडेगाआममानव को महामानव बनना पडेगा। आममानव यदि किसी तरह इस मे शामिल हो भी गया तो उसे महामानव बनने की भोगवासना का शिकार बता दिया जायेगा, कुछ समय बाद उसे खुद समझ नही आयेगा कि वह आममानव है या महामानव।

माना समुन्द्र मंथन के पास अपार सम्पदा है, इससे जितना दिल मांगेगा उतना पाया जा सकता है, लेकिन अमृत और रत्नो के साथ सुरा और जहर भी निकलता है। एक तरफ समुन्द्र मंथन से प्राप्त अमृत और रत्नो से से सुख और सुकून मिलेगा, वही दूसरी तरफ जहर के कहर के लिए भी तैयार रहना पडेगा और सुरा का सेवन कर कुछ मानवो मे दानवी मुखरता भी सर चढकर बोलेगीइस दानवी मुखरता के लिए भी तैयार रहना पडेगा।

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