Tuesday 12 January 2016

मुद्दा युवा हो 

मुद्दों की भीड़ अपने भीडेपन को लेकर भड़क रही है। एक दूसरे को ब्रेक कर खुद को ब्रेकिंग साबित करने की रेस लगी है। नवागन्तुकइंडिया की नई तस्वीर पेश करने का दम भरता है। पलक झपकते ही, मिस्टर इंडिया बन, गुल़ हो जाता है। चर्चक सांध्यकालीन मुकदमों में अपनी मंडली के साथ ढोल मजीरे पीटने लगते हैं। विशेषज्ञ चीरफाड़ कर दमदार दलीलों की कील ठोकते हैं। मुद्दा कराह उठता है। उसकी दिलकश चीख-पुकार की कर्णप्रिय प्रतिध्वनि सभी को दिली सुकून देती है। माहौल अपने स्वर्णिम दौर में पहुंच जाता है। फूलती छाती हड्डियाँ चटकाने पर अमादा होने लगती है। दबंग दहाड़ता है, जैसे सारे गमों की स्वर्ण भस्म यही है।

ललित प्रोग्राम्ड लीग (एल.पी.एल.) ने आते ही खूब धूम मचाई। अचानक एल.पी.एल. का मुद्दा छुट्टी मनाने पैरिस चला गया। बिना इस्तीफे! एल.पी.एल. के मुद्दे को पैरिस का वीजा मिल गया।  मानसून लगातार स्थगित होता रहा। एक मानसून विपक्ष के भारी दबाव की भेट़ चढ़ गया। दूसरा मानसून हवा के हल्के दबाव के कारण दम तोड़ गया। मानसून तो समय पर आया और चला गया। बरसने का वादा किया ही कहा था जो बेवफा की इल्ज़ाम झेले। मां का अदभुत रूप सामने आता है, लेकिन ज्यादा टिक नहीं पाता है। मां के रूप पर "बहु-राणी" अपना सिक्का जमा लेती है।जमना भी था, ये एक बहु नहीं थी।  ये तो रिश्तो की कसौटी पर चिकोटी काटती बहुवचन थी। समाज से लडकर विजय हासिल करते हुए, दो प्रेमी रिश्तें की डोर से जुड़ते है। ना जाने कैसे, ऐसा सात जन्मों का बंधन भी ब्रेकिंग खबर बन जाता है। इस दौड़ में धावक बदलते रहे हैं और बदलते रहेंगे, नहीं बदला है तो खबर का असर।
भ्रष्टाचार, गरीबी, किसान, मजदूर आदि, पुरातन गडे़ मुद्दे हैं। इन्हे उखाड़ फैकने में ही भलाई है। जमाने से ये व्हील चेयर पर यूँ ही झूल रहे हैं। ये मजबूरी के बाजार की लुप्त होती प्रजाति हैं। बहुतो की सिंहासन यात्रा में ये वफादार सारथी रहे हैं। अब इनको भुनाना सम्भव नहीं है। भुन-भुन कर ये राख हो गए हैं।  बारम्बार निचौड़कर इनके चीथडे उड़ाए जा चुके हैं। यदि ये यूंही मूँह बाए खडे़ रहते है, तो इन्हे जिंदा ही दिवार में चिनवा देना चाहिए। इनकी अन्तिम हार्दिक इच्छा भी यही है कि अब मुद्दा युवा हो।

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