Tuesday 12 January 2016

बोल गोलमोल, फिर सारे द्वार खोल

मम्मी की रोटी गोल है, पापा के पैसे गोल है, चंदा मामा गोल है, ये सब बचपन के राक एण्ड राल है। जैसे जैसे बचपन से जवानी आती है और जवानी मे रवानी छाती है, मम्मी की गोल रोटी मोटी हो जाती हैपिज्जा बरगर स्विस रोल का टेस्ट आफ सोल हो जाता है। पापा का पैसा ही नही, पापा का बडा बडा नोट भी जेब से गोल हो जाता है, चंदा मामा भी गोल नही रहता, ये भी महबूबा के शक्ल अख्तियार कर चकोर हो जाता है। इसका पता नही ये गोल-गोल कब किधर चल दे, इसकी स्थिति बडी डावाडोल है। इस गोल का कोई मोल नही, ये अनमोल है। भोलु के अनमोल होने मे इस गोल के मोल का झोल है, उसने गोलमोल के सुत्र को समझा है, गोलमोल उसके अनमोल होने का सुत्रधार है। सीधे रस्ते की उल्टी चाल हो या उल्टे रस्ते की सीधी चाल, कोई फर्क नही पडता क्योकि दुनिया गोल है और घूमना तो फिर भी गोल गोल है। गोल-गोल घुमने वाला अलग होता है, चालबाज तो चाल चलता है और जिस पर चलता है, वो गोल गोल चक्कर लगाते लगाते घमचक्कर बन जाता है।
इस गोल गोल ने बडो बडो का घमचक्कर बना दिया, भारत मे दौसो साल से जमे अंग्रेजो को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गोल गोल घूमते चरखे ने ऐसा घुमाया कि उनकी चकरघिन्नी बन गयी और भाग खडे हुए। स्वाधीनता संग्राम मे अंग्रेजो के खिलाफ गोलबन्दी करने मे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के गोल-गोल घूमते चरखे का बडा रोल रहा था, चरखे ने स्वाधीनता की क्रान्ति मे धुरी का काम किया था। भगवान श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र भी गोलाकार ही था, भले ही सौ अपराधो के बाद सुदर्शन का प्रयोग हुआ हो लेकिन जब हुआ तो अपने मे एक अलग इतिहास बन गया। आज इंटरनैट मे अपलोडिंग हो या डाउनलोडिंग गोल-गोल घुमते चक्कर से हर कोई वाकिफ है। इंटरनैट के गोल गोल घूमते चक्कर ने आज पूरी दुनिया को गोलबन्द कर दिया है। चाहे वह राजनीति हो, खेल हो, रिसर्च हो या बच्चो के गेम्स होआज इंटरनैट के गोलचक्कर से कोई भी क्षेत्र अछुता नही है, इंटरनैट के गोलचक्कर ने हर किसी की पुतली गोल कर दी है। इंटरनैट के गोलचक्कर ने बडे बडे गोलमोल चालबाजो का डब्बा गोल कर दिया। हाल के समपन्न चुनावो मे भी बहुतो को रोल करने मे इंटरनैटके गोलचक्कर का अपना गजब का रोल रहा है।

गोलमोल की गोली थ्री नाट थ्री की गोली से भी ज्यादा काम करती है, जिस पर गोलमोल की गोली दागी जाती है, ये उसे मारती नही है बस मरनासन्न कर के छोड देती है। जब तक भोलु गोलमोल मे पारंगत नही होते तब तक टालमटोल का सुत्र अपनाया जाता है, इससे कम से कम छुटभैया गोलमोल कि पदवी तो मिल ही जाती है। परमसिद्धि प्राप्त गोलमोल भोलु को अन्त मे गोल-गोल  इमारत मे अपनी प्रतिभा को चरम पर मे जाने का मौका मिलता है ये गोलमोल की क्रिया अप्राकृअतिक नही है, हम जिस धरती पर रहते है वह भी गोल है, ये धरती अपने ही अक्ष पर भी घूमती रहती हैयही नही ये धरती सूर्य के चारो तरफ भी घूमती है, इसे तो प्राकृतिक घूमना ही कहेंगेकेवल धरती हीनही, सभी गृह गोल-गोल होते है और गोल-गोल घूमते है और उनके साथ हम भी गोल-गोल घूमते रहते है। जिसने इस दुनिया के गोलमोल के बोल को समझा उसके लिए दुनिया के सारे द्वार खुल जाते है। इस गोलमोल के चक्कर मे घूमना हमारी मजबूरी हैएक चमकता सूर्य हमारी धुरी है, इस चमकते सूर्य से हम कभी नजरे मिलाकर ये भी नही पूछ सकते कि उसने हमारी चकरघिन्नी क्य़ू बना रक्खी है ?

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