Sunday 10 January 2016

सड़क छाप इश्क
स्कूटर की नजरें स्कूटी पर थी। बीच में साईकिल न जाने कहाँ से टपक पड़ी। यातायात की दृष्टि से साइकिल को देखना भी स्कूटर का कर्तव्य बनता था। ‘नैन मटक्का’ किसी का और ठुकाई साईकिल की हो गई। साइकिल तमतमा उठी, अगले ही पल स्कूटर के कान साईकिल के हाथ में थे। मौके पर जुटी भीड़ ने बड़ी मुश्किल से साईकिल की गिरफ्त से स्कूटर को मुक्त किया। एक स्कूटी की वजह से स्कूटर की इज्जत सरेराह चीथड़े उड़ गए। स्कूटर को बस यही अफसोस था कि स्कूटी पूरी कथा से बेखबर थी। स्कूटी की तरफ से दो शब्द सांत्वना के मिल जाते तो स्कूटर का  फटा दूध पनीर -सा खिल उठता।
अरे ये क्या! स्कूटी को काँटा चुभा। लेकिन दर्द से चिल्लाने के बजाए ये तो मटक रही है। ओह! ये तो थम गई। बहुत मटक रही थी, निकल गई ना हवा। ऐसा बोल, उस फटीचर तांगे वाले ने खिसियाहट  उतारी, जिसे अभी स्कूटी ने "ओवरटेक" किया था। साइड स्टैंड पर सड़क के किनारे खड़ा स्कूटर ये सब देखकर अपनी गर्दन मरोड़ टेढ़ा हुआ जा रहा है। सहानुभूति के ठेकेदार स्कूटी की तरफ दौड़ पडे़। असहनीय दर्द के साथ स्कूटर चिल्लाता है, दोगले लोग मुझे "साइडलाइन" कर अपनी ताल बैठा रहे हैं। ट्रक हो या टैम्पू किसी ने स्कूटर की तरफ ध्यान नहीं दिया, सब अपना सैल्फ स्टार्ट दबा टॉप  गियर में हैं।
वहीं हवाई जहाज हवा से बातें कर रहा है। बादल हवाई जहाज से नाराज है। हवा पर उसका एकाधिकार खतरे में है। एक ठेले  पर भटूरा दूसरी ठेले पर आइसक्रीम को देखकर फूला जा रहा है। दूसरी ठेले  पर आइसक्रीम भटूरे के लिए पल-पल पिंघल रही थी। ट्रैक्टर अपनी ट्रॉली के संग एकदम जैंटलमैन नजर आ रहा था। जिधर देखो इश्क बिखरा पड़ा है। ये सड़क छाप इश्क है। बेरुखी यहाँ भी है, लेकिन फर्जी है,इसमें मज़ा नहीं है।मानवीय "फेक" इश्क के पीछे की साजिश जैसा मज़ा तो बिल्कुल नहीं है। जो इश्क में होता है वो बेखबर हो जाता है। शायद इसीलिए खबर इस इश्क से नाराज है, उसे नफरत की तलाश है। इश्क चहुँ ओर फ़ैला हुआ है, बस नज़र में इश्क पैदा करने की देर है, फिर हर तरफ इश्कियां ही इश्कियां।

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