मुद्दों के तम्बू
बिहार में हैण्डबाल प्रतियोगिया का आधा सफर पूरा हो चुका है। इसमें टांग तुडा़ई, दांत तुड़ाई जैसे सभी कृत्य नियमविरुद्ध हैं। सिर फुटव्वल कोई कितना भी कर ले, इसकी छूट है। ठूसाठूस भरी हैण्डबाल के निशाने पर चांद है। हर किसी की हैण्डबाल की नज़र चांद की चमक उतारने पर है। जिस तेजी से ये हैण्डबाल चांद की दशा बिगाड़ने पर उतरी है, पूर्णिमा और अमावस्या के चांद में भेद करना सम्भव नहीं रहेगा । हमले का हथियार गोल हो तो धारदार हथियार से हमले की सभी धाराएं निष्प्रभावी हो जाती हैं। हैडबाल हवा में ही “स्विंग” हो रही है, इसे किसी जमीनी हकीकत पर टिप्पा खाने की जरुरत नहीं है। सब हवा का खेल है। जैसे-जैसे चुनाव के चरण आगे बढ रहें है, लोकतंत्र के कदम भी मजबूती की तरफ बढ रहे हैं।
समीकरणो को साधने के लिए नए इजहार, इकरार और तकरार के सैद्धांतिक तरीकों का शुद्धिकरण किया जा चुका है। कहीं इजहार को सामाजिक व्यवहार और शिष्टाचार का चोला पहनाया गया। कहीं इकरार की तस्वीर को पोस्टरों के हवाले कर इश्तिहार को सजाया गया। सम्मानित शब्दों की सूची में से अतिसम्मानित शब्दों की तलाशकर उनका यथोचित सर्वोत्तम उपयोग जारी है। हैण्डबाल प्रतियोगिता में सभी टीमें "इंडिया मेक" संसाधनों का प्रयोग कर, स्वदेशी उद्योगों को मजबूती दे रही हैं। इसमें भारतीय सिनेमा की हिट फिल्मों के परिष्कृत बोल हैं, ग्रामीण अंचल के सुसभ्य श्रेणी के शब्द हैं, प्रागैतिहासिक दर्शन से ओत-प्रोत तंत्र-मंत्र का दर्शन है।
उम्मीद की जा रही है कि इन चुनाव के बाद बिहार की सूरत बदल जाएगी। सड़कें पैरिस की सड़कों को धूल चटा देंगी। ओद्यौगिक विकास की चमक से सिलीकाॅन वैली की आंखे चुंधया जाएंगी। अपराध और अपराधी, विकास की आंधी में जड़ से उखड जाएंगे। जातीय समीकरण मोबाइल के ईयर फोन की तरह खुद में उलझकर रह जाएंगे। गरीबी,भृष्टाचार, बेरोजगारी, सु रक्षा जैसे मुद्दों के तम्बू बिहार छोड़ उत्तर प्रदेश का रुख करेंगे। इन मुद्दो को आज भी अपने पक्के घरों की तलाश है। इनके तम्बू लगते उखड़ते रहते है। इनकी तलाश अब खत्म होनी चाहिए। अब इन्हे इतना नचोड़ा जा चुका है कि इनके चीथडे उड़ चुके है। इन मुद्दो की वर्षो की वफादारी के मद्देनजर, इन्हे तम्बू से निकाल पक्का घर या ताबूत, कुछ तो मिलना चाहिए।
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