Sunday 10 January 2016

फ्लेवर कलेवर तेवर, यही चुनाव है


एक कहावत है कि मीठा बोलने वाले की मिर्च भी बिक जाती है। कुछ लोगो की बातें इतनी मिठास होती है किबातों के बाद रसगुल्ला भी खाओ तो फीका लगता है। गमों को भुलाने के मामले में मीठी बातें अंग्रेजी दवाईयों सरीखा तुरन्त असर करती हैं। गांव के झोला स्कूल से शहर में युनिवर्सिटी के पहले दिन का रोमांच भी इस मिठास की उत्तेजना के सामने फ़ीका है। गंगु के लिए आज बड़ा दिन था वो दिन आ ही गया जब गंगु को शहर जाकर मीठी बातें सुनने का मौका मिल गया, वो भी मुफ्त में। मीठे के शौकीन गंगु पर उम्मीद के उलट़ ये मीठी-मीठी बातें कहर बन कर बरसी। मीठी बातों का ऐसा असर हुआ कि मिठाईयों में तो जैसे नीम का छोंक लग गया हो। गंगु के लाख जतनों के बाद भी गंगु की मिठास लौटने का नाम नहीं ले रही थी।
सुझाव हेतु इष्टमित्रों की मंडली को आमंत्रित किया गया। किसी ने कहा कि नमकीन चनें खाओ। चनों की दर ने किसी को इस कदर नहीं छोडा था कि चने खाए जा सकें। एक सज्जन ने बाताया कि हरी मिर्च खाओ। आव देखा ना ताव एक-एक करके पूरी आधा किलो डकार ली। आंखे लाल हो गयी, आंसुओं की अविरल धाराएं बह निकली,लेकिन मिठास की वापसी नहीं हुई। किसी ने बताया कि नीम के पत्तो का काढा बनाकर पियो, किसी ने बताया कि अमरूद के पत्तो का काढा बनाकर पियो। सब किया लेकिन समस्या कुन्डली मारे जस की तस जमी रही। गंगु का दूर का रिश्तेदार जो पडौस में ही रहता था, शर्तिया इलाज बताते हुए उसने एक बोरी करेले गंगु के आंगन में पट़क दिये।जैसा आत्मविश्वास चुनाव नतीजे आने से पहले हर नेता का होता है, रिश्तेदार का करेला विश्वास किसी नेता से कम कड़क ना था करेला नहीं है, पुर्खो का आजमाया हुआ पुराना नुख़्सा है, एक हफ्ते करेले के रस का सेवन करो और मिठास वापिस पाओ। 
गंगु अपनी बिमारी से इतना परेशान हुआ कि सोचते-सोचते गंगु मुर्छित हो गया। मुर्छावस्था  में गंगु को एक आवाज कांनों  में पड़ी कि जिसके पास से ये बिमारी लगी हैइलाज भी वही मिलेगा मुर्छा टूट़ते ही गंगु  मीठी बातो वाले एक बाबा के पास पहुंच गया। बाबा ने सारी बातें ध्यान से सुनी। गंगु को फार्मुला सुझाया कि तुमकोखुश होना चाहिए। जितने भी बड़े आदमी होते है वे फीकी चाय पीते है। अब तुम्हारी चाय फीकी हो गयी है। तुम्हारे ऊपर तो मुफ्त की कृपा हो गई है। तुम्हारा बड़े आदमी बनने का योग बन रहा है। दो-चार शरबती भाषण ओर सुन लो, पूरी कृपा आ जाएगी। कृपा यहीं रुकी हुई है गंगु वापसी लौटते हुए यही सोच रहा था कि वह कितना बेवकूफ है। देखते ही देखते वह इतना बडा़ आदमी बन गया और वह खुद को बीमार समझ रहा था। कितने अच्छे हैं, मीठी बातो वाले बाबा। एक पल समस्या जड़ से खत्म कर दी। गंगु फिर भाषण सुनता है। गंगु खु्श है
आज उसके पास खुले बाजार का पैक्ड माल चुनने का अधिकार है। हर माल की बराबर मिठास और वजन। सबके अपने-अपने फ्लेवर, कलेवर और तेवर, यही चुनाव है । सभी डब्बों में एक ही तरह का और बराबर वजन का माल है। माल किसी का भी हो, अपना-अपना रंग चढा हलवाई की दुकान सजी हुई है। गंगु पल भर में आसमान के सितारों को अपनी मुट्ठी में दबोच लेता है। खुली मुट्ठी जैसे ही खुलती है, फिर ख़ाक की ही निकलती है। अन्त में ख़ाक छानते-छानते जब कुछ नहीं पाता तो हतास हो मुर्छित हो जाता है। फिर एक बाबा आता है। बाबा-आया,बाबा-आया चिल्लाता हुआ गंगु, फिर एक बार बाबा के पीछे हो लेता है। और फिर एक बार....

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