Tuesday 12 January 2016

झटकामैन इज् करिश्मा एण्ड करिश्मा इज् झटकामैन

दो तरह के लोग होते है, एक तो सदा दूसरो को झटके पर झटका देने वाले झटकामैन होते हैं और दूसरे सदा फटके पर फटका खाने वाले फटकामैन होते हैं। झटकामैन को तो देखते ही लगता है कि उसके अन्दर कुछ बात है जो ज़रा हट कर है, ज़रा हट के वाली बात ही झटकामैन सिम्बल बन जाती है। बड़ी बड़ी राजनैतिक पार्टियों का झटका भी सिम्बल से ही होता है। अधिकतर लोग अपने बाल काले या गोल्डनकरते हैं लेकिन ज़रा हट कर बाल लाल, सफेद, नीले या पीले भी किये जा सकते हैं, अधिकतर को मरनोंपरान्त फूलमाला और अगरबत्ती के दर्शन होते हैं, ज़रा हटकर ये काम खुद अपने लिए जीते जी किया जा सकता हैअधिकतर लोग हाफ या फुल बाजु की कमीज पहनते हैं ज़रा हट कर सैमीफुल बाजु की कमीज पहनी जा सकती है या फिर फुल बाजु को ही ऊपर चढाया जा सकता है, अधिकतर लोग अपनी जीन्स पैन्ट को फटने के बाद फैंक देते है ज़रा हट कर नयी जीन्स पैन्ट को फाड़कर पहना जा सकता हैअधिकतर सूट बूट से जैन्टल मैन की छवि बनाने की कोशिश करते हैं ज़रा हट कर स्त्री हुई पैन्ट को रात को पहन कर सोया जाए और सुबह को मुसी हुई पैन्ट से अपनी साधारण छवि को उभारा जा सकता है। ऐसे अनेकानेक नुख़्से देखते ही देखते फटकामैन को झटकामैन बना सकते हैं।
किसी भी झटके को फटका लगाकरहर कोई झटकामैन बनने की फिराक में लगा रहता है, ये झटका फटका ऐसे ही चलते रहने वाली प्रक्रिया है, जिसमें सबको झटके और फटके पडते रहते हैं। किस हाथ में आधी रात को डंडा देख लिया जाए फिर उस हाथ से तो सपने में भी डर ही लगेगा, इसके बाद भी भला कोई डंडे वाले हाथ का साथ कैसे निभा सकता है। बात यहाँ तक हो तो शायद भुलाया भी जा सकता था लेकिन पानी तब सर से ऊपर निकलने लगता है कि वो हाथ जब भी सामने आए तो बाजु चढाते हुए आए, कागज फ़ाड कर गुस्सा दिखाए, फिर ऐसे हाथ से डर लगना तो लाजमी है। ऐसे मौके पर यदि कोई पुष्प लिये स्वागत के लिए तैयार हो तो झटकामैन को समझो फटका खाने का समय आ गया है। जब कमीज की बाजु चढानी ही नहीं तो कमीज की बाजु का करना भी क्या है हटा देना ही बेहतर है और व्यंग्य बाणो से लबरेज़ बिना कागज वाला कंठस्तभाषण देने में कौशल्य हो और कागज भी नहीं फाडना हो तो कागज का करना भी क्या है। एक तरफ गुस्सा झेलना पडे़ वहीं दूसरी तरफ हंसगुल्ले हो तो भला कौन गुस्सा झेले। सालो साल झटका देने वाले को भी कभी कभी फ़टका खाना पड जाता है।
झटकामैन बनना किसी जादुगरी से कम नहीं है। झटकामैन की जादुगरी यही होती है कि फटकामैन का ध्यान वहाँ ना जाए जहाँ जादुगरी चल रही होती है। काला धन, भ्रष्टाचार आदि  जिनसे सब कुश्ती लडते हैं और जादु कहीं और ही चलता है। पहले झारखंड और जम्मु-काश्मीर पर ओपीनियन पोल, डिबेट आदि होना चाहिए था लेकिन उससे पहले दिल्ली पर जबरदस्त माथापच्ची शुरु हो गयी हैना जाने ये किसका जादु है और कौन है इस जादु का मितवा। जादुगर ही तय करता है कि फटकामैन का ध्यान कहाँ लगवाना है और असल खेल कहाँ चलना है। फटकामैन को झटका तब लगता है जब जादुगर की जादुगरी अपने अंजाम तक पहुँच चुकी होती है। इन झटको और फटको पर दर्शक अपनी पैनी नज़र गडा़ये बैठा रहता है और अपने मौके पर दर्शक बखुबी अपनी बाजीगरी दिखाता है। अन्त मे दर्शक की बाजीगरी ही तय करती है कि कौन बनेगा झटकामैन और कौन बनेगा फटकामैनफिर ढोल नगाडो के साथ गाता है बाजीगर मै बाजीगर। इस बाजीगर की बाजीगरी से कोई नहीं बच पाया वरना झटकामैन का झटका चलने के बाद एक बार को तो लगने ही लगता है कि झटकामैन इज्करिश्मा एण्ड करिश्मा इज् झटकामैन

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